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समय - ई. नीलिमा गर्ग

1. समय

मुट्ठी में   बंधी  रेत की तरह
फिसल रहा है हाथ से
समय
बँधा क्यूं नही रहता
कुछ ख़ूबसूरत लम्हो की तरह
समय बहता रहता है दरिया की तरह
समय
पलट कर नही आता 
नही दिखता गुज़रे वक़्त की परछाई 
दर्पण में पड़ी लकीरो की तरह 


2. उमंग

बसन्त की उमंगों में
इन्द्रधनुषी रंगों में
बस तेरा नाम महकता है.............

सावन की फुहरों में
मन वीणा के तारों में
तेरी ही धुन बजती है................

उषा की अरूणाई में
सुनहली चम्पई साँझ में
तुम ही तुम शामिल हो............

मलयज पवन के झोंकों में
महकी मदिर बयार में
तुम्हारें ही अहसास है.............


ई. नीलिमा गर्ग


Address:
Er . neelima garg
chander road dalanwala
dehradoon
I am an engineer by profession . I always found Hindi interesting so writing poems in hindi to give voice to my feelings.

1 comment:

Unknown said...

बहुत देर से सोया था, 
अब जागा समझ में आया है, 
दिखता है सब साफ-साफ, 
कोई कीड़ा है घर खाया है, 
मेरी माटी मेरे देश पर, 
फैला काला साया है, 
पर काटे मेरी चिडि़या के, 
पन्छी अब चिल्लाया है, 
जोर से सब आवाज उठाओ, 
कान भरो सब हर साथी के, 
सर पर चढ़ कर बनो महावत, 
पाप के हर काले हाथी के, 
नसें जगा लो सब छाती की, 
माटी ने बुलवाया है, 
मठाधीश बन बैठा कुत्ता, 
हमें देख गुर्राया है,

उठो जगो मर्दानों और सब, 
काटो कुत्ते बन कटार हो, 
चलो चुका दो बदला इस, 
मिट्टी का सारे तरनतार हो, 
जो ऊँचा चढ़-चढ़ के भौंके, 
हर कुत्ते का बार-बार हो, 
बहिष्कार हो बहिष्कार हो, 
बहिष्कार हो बहिष्कार हो..........................

खून से लथपथ मेरा परिन्दा, 
हँसता है हर बार दरिन्दा, 
जितना हम मजबूर खडे़ हैं, 
उतने ही हम सब शर्मिन्दा, 
हम भी हैं देश के मुजरिम, 
हम सब ने करवाया गन्दा, 
माँ की अस्मत लूट-लुटा के, 
बेच बनाया अपना धन्दा, 
कब तक हम मगरूर रहेंगे, 
धर्मयुद्ध से दूर रहेंगे, 
माई बुलाती कब तक बेटे, 
शरम-लाज में चूर रहेंगे, 
चलो उठा लें आग-मशालें, 
बना लें खुद फाँसी का फन्दा, 
गले में डालें खींच के लाएं, 
चौराहे पे जला दें जिन्दा,

बारूद भरें हमसब नस-नस में, 
फट जाएं भीषण प्रहार हो, 
देश बचाने देश बनाने, 
खून बहा दें लाल धार हो, 
बहिष्कार हो बहिष्कार हो, 
बहिष्कार हो, 
बहिष्कार हो.................................

विजय वरसाल.............






यह कविता मैंने लिखी है मेरे पास ऐसी ही कई और मेरी खुद की लिखी हुई कविताएं हैं

मैं बहुत ही अधिक समस्याओं से ग्रसित हूं योग्य होने के बाद भी मुझे अपनी योग्य को दूसरों के आगे सिद्ध करने का अवसर नहीं मिल रहा है कहीं से भी कोई भी मेरा साथ देने को तैयार ही नहीं है आपसे बहुत आशा की उम्मीद लगा रखी है

कृपया मेरे इस छोटे से सविनय निवेदन स्वीकार कर मेरे विषय में कोई उत्तर देने की कृपा करें आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होगी

हम बदलेंगे 
युग बदलेगा 
बदलेगा भारत सारा.......................

आपका दोस्त 
विजय वरसाल.............................
+919506255907
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खाल इज्जत साँसे गैरत,
धूप में सब कुछ जले,
खून का संचार भी कम, 
कम सा नस नस में चले, 
दो दो रोटी माँगे माँगे, 
सूख जाते हैं गले, 
मिल गई तो भी भले और, 
न मिली तो भी भले,

भूख की तड़पन मिटाने, 
पेट पापी हो गया, 
नाम कर बैठे भिखारी, 
दर्द साकी हो गया.....................

बोलना आता मगर है, 
बोल कुछ पाते नहीं, 
रंज में रोते हैं पीते, 
अश्क पी पाते नहीं, 
है उन्हें मालूम सब कुछ, 
शर्म वो खाते नहीं, 
इसलिये बेशर्मी सुनते, 
भूख सुन पाते नहीं,

फूल से बच्चे हैं मैले, 
छोटे छोटे दोफुटे, 
एक को कुछ दे दिया, 
तो घेर लेते झुरमुटे, 
कोई बिटिया चाँद सी है, 
कोई बच्चा अर्जुना, 
शक्ल हँसती वाह रे किस्मत, 
भाग सबके सरफुटे,

हर कटोरा पेन बना है, 
हाथ कापी हो गया, 
भूख की तड़पन मिटाने, 
पेट पापी हो गया, 
नाम कर बैठे भिखारी, 
दर्द साकी हो गया...........................

विजय वरसाल.........,...........

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मैं अपनी योग्यता को साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता परंतु कोई मौका मिल ही नहीं रहा है सबसे बड़ी समस्या तो यहीं है

आपके लिए मेरी हालत को समझना कोई बड़ी बात नहीं है 
शायद आपके लिए बहुत छोटी बात होगी लेकिन मेरे लिए बहुत बड़ी है 
बात केवल एक चांस की है सर 
केवल एक चांस

हम बदलेंगे
युग बदलेगा 
बदलेगा भारत सारा ................

आपका दोस्त 
विजय वरसाल.........................
+91 9506255907