बदले हुए से लोग
कभी ये बदली सी धरती,
तो कभी बदला सा आसमान देखता हूं।
वफा से कभी जो रहती थी गुलजार,
उन गलियों को मैं आज सूनसान देखता हूं।
खुदा से तो क्या खुद से दूर,
हर एक इन्सान देखता हूं।
कल तक थे जो घर,
आज मैं वो पत्थर के मकान देखता हूं।
जीतें थे जिनके दिलों में दोस्ती के कारवां,
आज मैं उन्ही के दिलों मे क्यूं समसान देख्ता हूं।
नन्हें से कदमों से चलते थे, दौडते थे हम,
उन राहों पर मैं मिटे से कुछ निशान देखता हूं।
बदल जाते है क्यूं लोग बस जमाने की रददो बदल में,
अधूरे उन्हीं के फिर भी मैं अरमान देखता हूं।
रोकता हूं, मैं जितना छलक ही आते है अश्क,
सपनो को जब हालातों से परेशान देखता हूं।
तो कभी बदला सा आसमान देखता हूं।
वफा से कभी जो रहती थी गुलजार,
उन गलियों को मैं आज सूनसान देखता हूं।
खुदा से तो क्या खुद से दूर,
हर एक इन्सान देखता हूं।
कल तक थे जो घर,
आज मैं वो पत्थर के मकान देखता हूं।
जीतें थे जिनके दिलों में दोस्ती के कारवां,
आज मैं उन्ही के दिलों मे क्यूं समसान देख्ता हूं।
नन्हें से कदमों से चलते थे, दौडते थे हम,
उन राहों पर मैं मिटे से कुछ निशान देखता हूं।
बदल जाते है क्यूं लोग बस जमाने की रददो बदल में,
अधूरे उन्हीं के फिर भी मैं अरमान देखता हूं।
रोकता हूं, मैं जितना छलक ही आते है अश्क,
सपनो को जब हालातों से परेशान देखता हूं।
- डॉ रविन्द्र कुमार
ग्राम-वेदखेडी, पोस्ट- झिंझाना,
जिला- प्रबुद्ध नगर (उत्तर प्रदेश)