1. खटमल
रात को बार-बार जागता हूँ
पाँच-छ: खटमलों का काम
तमाम कर ही देता हूँ
फिर भी रक्तबीज की भाँति
ये उग आते हैं
रस्सियों की जकड़नों के बीच
अपना आसरा बना रखा है इन्होंने
अब तो इन रस्सियों से भी
डर लगने लगा है
कितने अरमानों से
एक खाट बुनी थी
और एक निश्चितंता की नींद
लेना चाहता था
पर अब तो लगता है
रस्सियां भी मेरी नहीं
खटमलों की ही सुनती हैं।
2. सुबह का अख़बार
आज सुबह का अख़बार देखा
वही मार-काट, हत्या और बलात्कार
रोज पढ़ता हूँ इन घटनाओं को
बस पात्रों के नाम बदल जाते हैं
क्या हो गया है इस समाज को
ये घटनायें उसे उद्वेलित नहीं करतीं
सिर्फ ख़बर बनकर रह जाती हैं
कोई नहीं सोचता कि यह घटना
उसके साथ भी हो सकती है
और लोग उसे अख़बारों में पढ़कर
चाय की चुस्कियाँ ले रहे होंगे।
3. डाकिया
छोड़ दिया है उसने
लोगों के जज्बातों को सुनना
लम्बी-लम्बी साढ़ियाँ चढ़ने के बाद
पत्र लेकर
झट से बंद कर
दिए गए
दरवाजों की आवाज
चोट करती है उसके दिल पर
चाहता तो है वह भी
कोई खुशी के दो पल उससे बाँटे
किसी का सुख-दु:ख वो बाँटे
पर उन्हें अपने से ही फुर्सत कहाँ?
समझ रखा है उन्होंने, उसे
डाक ढोने वाला हरकारा
नहीं चाहते वे उसे बताना
चिट्ठियों में छुपे गम
और खुशियों के राज
फिर वो परवाह क्यों करे?
वह भी उन्हें कागज समझ
बिखेर आता है सीढ़ियों पर
इन कागजी जज्बातों में से
अब लोग उतरकर चुनते हैं
अपनी-अपनी खुशियों
और गम के हिस्से
और कैद हो जाते हैं अपने में।
कृष्ण कुमार यादव
भारतीय डाक सेवा, निदेशक डाक सेवाएं
अंडमान व निकोबार द्वीप समूहए पोर्टब्लेयर-744101
Email: kkyadav.y@rediffmail.com
Blogs: http://kkyadav.blogspot.com
http://dakbabu.blogspot.com