सजा-संवरा कोई वास्तु नहीं
मुझे गहे बिना आजतक
हुआ कोई अरस्तु नहिं
परिचय क्या दूं अपना
हूँ मै केवल हकीकत
बाकी सारे दिवा-सपना
बेजान हूं पर जन लिए हूं
मृत हूँ पर मुस्कान लिए हूं
मै ही सत्यम -शिवम्- सुन्दरम हूं
आहा ! ठीक कहा आपने,मैं तो कलम हूँ
हाँ,मैं कलम हूँ जिसमें
सुभाष की दृढ़ता है,भगत की निडरता है
शेखर की स्वतंतत्रा है,गाँधी की सहिष्णुता है
हाँ, मैं ही कलम हूँ जो
राणा या झाँसी की तलवार है,कुंवर या तिलक की ललकार है
अभिमन्यु या खुदीराम की वार है,हिमालय या शिवाजी सी पहरेदार है
हाँ, मैं कलम ही हूँ जिसने
तुलसी,कबीरा नानक को अमर किया
भाव- वेदना-संवेदना को सुंदर किया
हाँ, मैं कलम ही हूँ जिसने
एकता-विद्वता-मित्रता का पाठ पढ़ाया
प्रेम-त्याग-संकल्प का जाप कराया
हाँ,मैं कलम हूँ जो
चंदन में आग खोज लेता है
बिरानों में अनुराग खोज लेता हे
हाँ,मैं कलम हूँ जो
बिना मौसम के
गर्मी पैदा करवा दूँ
कहो तो अभी आंखों से
हजारों झरने बहवा दूँ
हाँ,मैं कलम हूँ जो
श्रृष्टि के पहले भी था
और बाद तक रहेगा
अंत में बस यही कहूँगा
देवी-देवता,नर-नारी
पशु-पक्षी या प्राणी संसारी
सारे के सारे विनाशी हैं
एक अकेला कलम है
जो चिर-अविनाशी है
सुनील कुमार सोनू
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