तेरी यह हँसी ही मेरी किस्मत हँसा देगी;
मुड़ गए तुम देख मेरा पतझड़ जीवन को,
सोचा न कि इसमें भी बहार आयेगी।
अरे काँटों में रह रहा हूँ तो क्या हुआ,
कभी इस चमन में भी गुल खिलेगें;
आओगे मिलने तुम एक अफसोस के साथ,
क्या हम फिर पहले की तरह मिलेगें।
अरे टुट जाते हैं जो धागे एक बार भी,
जुट पाते नहीं सपाट वे फिर कभी;
अगर टुटना ही था इस दिल से भी,
तो जुटे क्यों थे इस दिल से कभी।
बदल गए तुम इतनी जल्दी कैसे,
मुझे तुमसे यह उम्मीद न थी;
तुममें यह अहं आ गया कबसे,
जबकि तुझमें यह सब बात न थी।
रह गया अकेला मैं तो क्या हुआ,
आना जाना है अकेला सभी को यहाँ;
मगर अजीज दोस्त वह दोस्त है,
जो छोडता नहीं कभी दोस्त का जहाँ।
कमजोर समझ बैठा शायद तुम,
इस टिमटिमाते मध्दिम प्रकाश को;
मगर लाख आँधी आये जीवन में,
बुझा सकता नहीं "निर्भीक" प्रकाश को।
प्रकाश यादव "निर्भीक"
अधिकारी, बैंक ऑफ बड़ौदा, तिलहर शाखा,
जिला शाहजहाँपुर, उ0प्र0 मो. 09935734733
E-mail:nirbhik_prakash@yahoo.co.in
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