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'कबीर तुम कहाँ हो' - डॉ. दीप्ति गुप्ता


कबीर तुम कहाँ हो.................
आज इस युग को तुम्हारी ज़रूरत है,
भूले हुए को दिशा की ज़रूरत है
डरे हुए को वाणी की ज़रूरत है,


तुमने कहा -----
'जो नर बकरी खात है, ताको कौन हवाल '
पर, अब नर ही नर को खात है, बुरा धरती का हाल !

कबीर तुम कहाँ हो.................
आज इस युग को तुम्हारी ज़रूरत है,
भूले हुए को दिशा की ज़रूरत है,
डरे हुए को वाणी की ज़रूरत है,


तुमने कहा -----
'मन के मतै न चालिए '
पर - अब, मन के मतै ही चालिए, स्वाहा सब कर डालिए !

कबीर तुम कहाँ हो.................
आज इस युग को तुम्हारी ज़रूरत है,
भूले हुए को दिशा की ज़रूरत है,
डरे हुए को वाणी की ज़रूरत है,

तुमने कहा -----
'तू - तू करता तू भया, मुझ में रही न हूँ '
पर अब - तू तू मैं मैं हो रही, हर मन में बसी है 'हूँ',

कबीर तुम कहाँ हो.................
आज इस युग को तुम्हारी ज़रूरत है,
भूले हुए को दिशा की ज़रूरत है,
डरे हुए को वाणी की ज़रूरत है,

तुमने कहा -----
'राम नाम निज पाया सारा, अविरथ झूठा सकल संसारा',
पर अब-राम नाम तो झूठा सारा,सुन्दर,मीठा लगे संसारा,


कबीर तुम कहाँ हो.................
आज इस युग को तुम्हारी ज़रूरत है,
भूले हुए को दिशा की ज़रूरत है,
डरे हुए को वाणी की ज़रूरत है,


तुमने ठीक ही कहा था -----
'झीनी झीनी बीनी चदरिया, ओढ़ के मैली कीन्ही चदरिया'
पर,आज हुआ बुरा हाल यूँ उसका,मैल से कटती जाए चदरिया !


कबीर तुम कहाँ हो.................
आज इस युग को तुम्हारी ज़रूरत है,
भूले हुए को दिशा की ज़रूरत है,
डरे हुए को वाणी की ज़रूरत है,

वरदान - डॉ. दीप्ति गुप्ता


ईश्वर के दरबार में एक बार धरती से लाए गए व्यक्ति से जब जवाब तलब किया गया तो, उसके उत्तर सुनकर ईश्वर स्वयं वरदान बनकर उस पर न्यौछावर होने को कुछ इस तरह तैयार हो गया -
ईश्वर ने पूछा - धरती पर तुमने क्या किया
मानव - धर्म
ईश्वर - क्या दिया
मानव - प्यार
ईश्वर - क्या लिया
मानव - दर्द
ईश्वर - क्या बटोरा
मानव - नेकी
ईश्वर - क्या बाँटा
मानव - दूसरों का दुख
ईश्वर - क्या तोड़ा
मानव - दुर्भाव
ईश्वर - क्या जोड़ा
मानव - सदभाव
ईश्वर - क्या मिटाया
मानव - द्वेष
ईश्वर - क्या कायम किया
मानव - शान्ति
ईश्वर - क्या खोया
मानव - बुराई
ईश्वर - क्या पाया
मानव - भलाई
ईश्वर - तुम्हारी जमा पूँजी
मानव - इंसानियत
ईश्वर को लगा यह ज़रूर कोई संत या फक्क़ड साधु होगा,लोगों को प्रवचन देता होगा - पूछा - करते क्या हो?
मानव - लेखक हूँ
ईश्वर - लेखक ?
मानव - जी ।
ईश्वर - जानते हो ऐसे भारी - भारी काम कितने कठिन है ?
मानव - जी आसान है !
ईश्वर - ऐसी कौन सी जादू की छड़ी रखते हो तुम ?
मानव - जी छोटी सी कलम !
ईश्वर - छोटी सी कलम ?
मानव - जी उसी में है इतना दम !
ईश्वर - झूठ
मानव - जी, सच !
ईश्वर - उसे कैसे चलाते हो
मानव - स्याही में डुबोकर काग़ज़ पर चलाता हूँ ।
ईश्वर - उससे क्या होता है ?
मानव - बड़े-बड़े ह्रदय परिवर्तन, बड़े-बड़े जीवन परिवर्तन, दिशा परिवर्तन, यहाँ तक कि बड़ी - बड़ी क्रान्तियाँ
ईश्वर - क्या कहते हो, क्रान्ति तो तलवार और कटार की धार पर होती हैं,
मानव - जी, पर क़लम इन सब से पैनी होती है।
सोए को जगाती है, निराश को उठाती है,
उदास को हँसाती है, दमित को दम देती है,
नासमझ को समझाती है, क्रूर को कोमल बना
प्यार का पाठ पढ़ाती है, जीवन की परतें खोल
गहरे अर्थों का परिचय कराती है,
क्या कहूँ, क्या - क्या न कहूँ
यह अनोखी सबसे है
वेद, क़ुरान, बाइबिल, सब इसी के दम से है !
सच कहता हूँ मेरे भगवन, मैं भी इसी के दम पर लेखक हूँ
इसी से क,ख,ग ध्वनियों को, शब्दों में ढालता हूँ
अर्थों से भरता हूँ और वे ज़रूरी काम करके
समाज और जीवन के प्रति, अपना दायित्व निबाहता हूँ
जिन्हें सुनकर आप हैरान हैं !!
सृष्टा ने ऐसे दृष्टा को वरदान देते हुए कहा
तो ठीक है आज के बाद, जब भी मुझे धरती पर
कुछ परिवर्तन लाना होगा, मैं तुम्हारी क़लम में उतर आऊँगा,
तुम्हारी क़लम को दिव्य और धरती को स्वर्ग बनाऊँगा !

मानव बोला - "और मैं धन्य हो जाऊँगा" !!