पापा
काश मैं तेरी गुड़िया ही बनी रह जाती ना बढ़ता कद मेरा
ना कम होती किलकारियां
पूरी दुनिया तेरी बाहों में ही सिमट जाती ।
गुड्डे गुड्डियों की शादियों के खेल ही होते,
ना बड़ी होती ना दुल्हन बन चली जाती
रोज नया खेल होता खुशियों का
मेल होता जो कड़कती बिजली तो
तेरे पैरो से लिपट जाती ।
हर डर तुझको देख कर दूर हो जाता
तेरी गोद में सर रख सब कुछ मिल जाता
काश एक पल फिर वो घडी मिल पाती
पर
क्यों काटते हो पर मेरे
अभी -अभी तो खोले है
उड़ना सीखा है नितम्भ आकाश में
मुझे उड़ने दो
महत्वकांछाओ के पर फैलाने दो
सफलता की उचाईया अब चढ़ने दो
विचरन करने दो आशाओं की भोर में
दर्द की शामो को अब ढलने दो ।
त्याग त्तपस्या सहनशक्ति के बहुत से उदाहरण बनी
अब मेरी उप्लब्धियो के नए आयाम मुझे गढ़ने दो
अब ना बढ़ते कदमो को रोकना
ना स्त्री पुरुष की संवेदना से टोकना
बस समानता का दे अधिकार जो चाहू वो करने दो
मुझे उड़ने दो ।
गरीब
एक गरीब की ये कहानी है बड़ी बेबस
मजबूर सी जिंदगानी है ।
हाथो में निवाला है दो खाने वाले चार
कसूर किसका है देना वाला दातार
दो हाथ तो दे दिए मुसीबते हजार
गरीबो की सुनता है कौन लगता है बाजार
जिसकी बोली लगती जितनी उसका है संसार
दान पुन्य का गोरख धंधा और गरीबो पर अत्याचार
सूट बूट पहन खुर्सी पर बैठे
बूढ़ा चपरासी चाय बनाता है ।
जो काँपा हाथ जरा सा बाबू से गाली खाता है
अमीर का कुत्ता सुस्त है देखो
गरीब का बच्चा रोया जाता है
घुड़की सुन कम्पाउंडर की
गरीब डर से लाइन लगाता है
कुत्ते के साथ देखो डॉक्टर एमेर्जेंसी में जाता है
पैसे की खींचातानी में इंसानियत मरती है ।
अंत में कह लो जो भी होता है ,
वही जो अमीरी कहती है ।
माँ
कब आसान हुए रास्ते उनका
हाथ थामे हुए कब आयी सुनहरी सुबह
उनके साये तले दरख गिरते रहे
हम साथ चलते रहे कभी उची तो कभी नीची डगर
हम भी बनते बिगड़ते रहे
उनके साये तले यूँ महफूज हम
जैसे तपती धूप में आचल कोई ।
जब भी डबडबाई आँखे माजी की
ओट से हँसता कोई साया पहचाना सा
वो खनक भी कुछ सुनी हुई,
जैसे बचपन की वो लोरी गाता कोई ।
ठंडा हाथ तेरा
पेसानी पे रखा हुआ
या मेरी परेशानियों को
निगलता गया हो कोई ।