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दो बांगला कवितावाँ -सुभाष मुखोपाध्याय

1.मरुभोम
म्हैं तो नी भूल्यो
पण कियां भुलाय दी थे
वा शोक री रात
मरुभोम री पवन
उड़ावै ही धूळ आकाश री आंख्यां में
आपरी घांठी नै
ऊंचो उठावतो
टिन-टिन.....टिन-टिन
करतो ऊंटाँ रो टोळो
बावड़ रैयो हो सहर नै छोड़’र
गांव रै कानी
म्हां नै ठानी
रस्तै रै दूजी कानी
कुण सो खड़यो हो बिरछ


2.अर एक दिन
दोनू पग
फंसग्या रास्तै रै कादै में
बांस रै कांपतै पुळ नै
सोरो-दोरो पार कर’र
चल्यो गयो है अबार ई अबार
एक दिन और
चैंका देवै
बीच-बीच में माथा ऊपर
दिन री आवाज
सैनणा री डाल्यां ऊपर झूले है
बड़ी-बड़ी बूंदां
इण बार
हुवैली धान री अणूती खेती
कैवती कैवती
पोखर सूं
हाथ में दीयो लियां
आवै है घर री बीनणी सगळी थळी पर
नचाती अंधेरा नै

उल्थो: श्रीगोपाल जैन

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