आज है इकत्तीस
कल
पहली होगी
मुन्ने
ने, गुड़ियां से यह बात
सौ बार कह ली होगी
आज है
इकत्तीस
कल, पहली होगी
ददा
पगार लाएंगे
हम
दूध भात खाएंगे
बच्चे
मगन हैं
पत्नी की आंखों में
भी
शुभ लग्न है
खत्म होगा
वक्त इन्तजार का
मुंह देखेगी
फिर एक बार पगार का
माना
पगार में नहीं
ऐसा नया कुछ होगा
पर
एक बार फिर नोट गिनने का सुख होगा
वह
बैठेगी
देहली पर पंाव पासर
उतार देगी
पिछले मास
का उधार-भार
खोली का
किराया लेने मुनीम आएगा
कल तो
नालायक बनिया भी
उसे देखकर मुस्कराएगा
घर में
मचेगी बच्चों की चीख पुकार
कल तो
लगेगा दाल में बघार
वे भी
कल बोतल लाएंगे
पहले वह
बोतल से डरती थी
जब भी
पति पीते थे वह लड़ती थी
पर
धीरे धीरे वह जान गई
पति की आंखों
और बोतलों में छुपे दर्द को पहचान गई
बरसों पहले
जब वह
दुल्हन बन कर आई थी
तो
पति फैक्टरी से
घर लौटकर
कैसा-कैसा भींचते थे
समीपता के
वे पल
अब केवल
पहली को
बोतल खाली होने
के बाद आते हैं
पर
पति की भी मजबूरी है
पूरा महीना
काटने के लिए
एक दिन का ख्वाब देखना जरूरी है
- कविगण अपनी रचना के साथ अपना डाक पता और संक्षिप्त परिचय भी जरूर से भेजने की कृपा करें।
- आप हमें डाक से भी अपनी रचना भेज सकतें हैं। हमारा डाक पता निम्न है।
- Kavi Manch C/o. Shambhu Choudhary, FD-453/2, SaltLake City, Kolkata-700106
Email: ehindisahitya@gmail.com
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
madhyam vagiya tapke ki sacchayi aapne kitni khoobsurati se chitrit ki hai.. saadhuwaad..
yaha bhi aayiye kabhi
- http://merastitva.blogspot.com
Post a Comment