परिचय:
श्रीमती श्रद्धा जैन
शिक्षा - विज्ञान में MSc और कंप्यूटर Advance accounting में डिप्लोमा। विदिशा में पली बढ़ी मगर पिछले नौ सालों से सिंगापुर निवासी हूँ। फिलहाल आप एक अंतर्राष्ट्रीय विद्यालय में शिक्षिका के रूप में कार्यरत हैं। 'विदिशा' भारत के मध्यप्रदेश में भोपाल शहर के पास एक बहुत छोटा सा शहर है। आपने केमिस्ट्री में अपनी शिक्षा पूरी की और वक़्त की हवा ने आपको सिंगापुर पहुँचा दिया यहाँ आकर देश की सभ्यता की खूबियों को जाना, जाना रिश्ते क्या हैं, अपनो का साथ कैसा होता है, और अपने देश की मिट्टी में कितना सकुन है कुछ एहसास कलम से काग़ज़ पर उतर आए और श्रद्धा आप सबके बीच आ गयी !
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कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
फानूस* की न आस हो , उस पर हवा चले
लेता हैं इम्तिहान अगर, सब्र दे मुझे
कब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा चले
नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग है
अब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले
चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही सिल सिला चले
खंजर लिये खड़ें हों अगर मीत हाथ में
"श्रद्धा" बताओ तुम वहाँ फ़िर क्या दुआ चले
*फानूस = काँच का कवर
2.
वक़्त करता कुछ दगा या चाल तुम चलते कभी
था जुदा होना ही हमको हाथ को मलते कभी
आजकल रिश्तों में क्या है, लेने-देने के सिवा
खाली हाथों को यहाँ, दो हाथ न मिलते कभी
थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
दो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी
कुरबतें ज़ंज़ीर सी, लगती उसे अब प्यार में
चाहतें रहती जवाँ, गर हिज्र में जलते कभी
आजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
लौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी
3 comments:
कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
फानूस* की न आस हो , उस पर हवा चले
थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
दो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी
Yu to in panqtiyo ko mai pahle bhi aapke blog per padh chuka hu, parantu aapki ye char panqtiya jab padho maan me viprit paristhityo se puri siddat ke sath do-do hath karne ka hausala jaga jati hai. Kam shabdo me yadi kahu to "These four lines are very close to my heart"
aapki geet-ghajal bahut achchhi he
aapne kitni achchhi gajal likhi hai ,dil baag -baag ho gyaa ,aapki gajlon me jo goodtaa chhipi hai uski koi saani nahin hai ,,,
krpyaa kabhi mere blog par bhi aayen
dhanywaad
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