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आखिरी ख़त - रचना श्रीवास्तव


कवियित्री का नाम: रचना श्रीवास्तव
जन्म: लखनऊ (यू पी), लिखने की प्रेरणा बाबा स्वर्गीय रामचरित्र पाण्डेय जी और माता श्रीमती विद्या वती पाण्डेय और पिता रमाकांत पाण्डेय।
रूचि: लेखन, अभिनय ,संगीत सुनना, कवि गोष्ठियों में भाग लेना, डैलस में, भारत में, मंच संचालन, अभिनय में अनेक पुरस्कार और स्वणॅ पदक भी आपको मिले हैं। वाद विवाद प्रतियोगिता में पुरस्कार, लोक संगीत और न्रृत्य में पुरस्कार, रेडियो फन एशिया, रेडियो सलाम नमस्ते (डैलस ), रेडियो मनोरंजन (फ्लोरिडा ), रेडियो संगीत (हियूस्टन), में कविता पाठ। कृत्या, साहित्य कुञ्ज, अभिव्यक्ति, सृजन गाथा, लेखिनी, रचनाकर, हिंद युग्म, हिन्दी नेस्ट, गवाक्ष, हिन्दी पुष्प, स्वर्ग विभा, हिन्दी मिडिया आदि में लेख, कहानियाँ, कवितायें, बच्चों की कहानियाँ और कविताये प्रकाशित।


1. आखिरी ख़त


मेरी बच्ची
जानती हूँ अब न जी पाऊँगी
तेरे साथ और न रह पाऊँगी
माफ़ करना ,मेरी बच्ची मुझे
के जन्म तो दिया तुझे ,
पर पाल न पाऊँगी
इस कठोर जहाँ मे तुझे
मै अकेला ही छोड़ जाऊँगी
रात दिन देखा था सपना तेरा
सोचा था साथ रहेगा सदा तेरा मेरा
पर .....
आज आई जो गोद मे मेरे
तो जी भर के तुझको खिला भी न पाऊँगी
सोचा था ,
जब तू पहला कदम उठाएगी
थाम उंगुली तेरी तुझ को चलना सिखाउँगी
कहेगी जब पहली बार माँ मुझे
दौड़ के तुझको गले आपने लगाऊँगी
तेरी तोतली बोली का इंतजार था कितना
पर अब जब तू बोलेगी ,
मै तुझ को सुन न पाऊँगी
दिल मे था के ,
हर रात तुझ को लोरी सुनाऊंगी
सपनो की प्यारी सी दुनिया मे
तुझे अपने साथ लेके जाऊँगी
करोगी जब जिदद कभी मुझसे
बड़े प्यार से तुझको बह्लाउँगी
तेरी मासूम हसी मे
गम आपने भूल जाऊँगी
फैला के नन्ही बाहें जब तू गले लग जायेगी
सारी दुनिया की खुशियाँ
मेरे क़दमों तले आजायेंगी
सजाये थे
तुझ को लेके कितने सपने मेने
अब उन्हें कभी भी पूरा न कर पाऊँगी
बस अभी थोड़े ही दिनों मे
इस जहाँ से मै चली जाऊँगी
काश!!!!!!!!!!!!!!!
काश कोई
सारी दौलत के बदले
मुझे जीने की थोडी मौहलत दे दे
तो कर के बड़ा तुझ को
हँसते हँसते इस दुनिया से चली जाऊँगी
पर ये हो न सकेगा जानती हूँ मै
फ़िर भी इन झूठे खयालो से
दिल को आपने बहलाती हूँ मै
बंद होती आंखों मै है बस मासूम चेहरा तेरा
सोचती हूँ के कौन पालेगा तुझे
कौन रखेगा ख्याल तेरा
मेरी बच्ची
तुझे अब बिन माँ ही बड़े होना है
ख़ुद ही आपना सहारा बनना है
मेरी अरुशी
मेरी प्यारी
जब आए मेरी याद तुझे
तस्वीर मेरी हाथों मै उठा लेना
गले उसको लगा लेना
मेरे आंचल मे ख़ुद लो लपेट लेना
बंद कर आँख मुझको तुम महसूस करना
मै हूँगी पास तेरे
इस बात पे भरोसा करना
दे न सकी माँ का प्यार तुझको
ममता की छाँव भी न दे सकी
इस खाता के लिए मुझको मेरी बच्ची
हो सके तो मुझको माफ़ करना
सांसे दूट रहीं है
बचने की आस भी छूट रही है
तू धुंधली सी दिख रही है
पर कितनी प्यारी लग्रही है
लगता है अब और न जी पाऊँगी
तेरी दुनिया मै अब न रह पाऊँगी
मेरी बच्ची
प्यार
- तेरी माँ


कहानी तो रोज
काकी सुनाती थी
माँ रात मे
न जाने कहाँ जाती थी
सुबह
कोई भूखा नही रहता था
आज भी
रात होने से डरती हूँ
काश !
इस डर के अंधेरों की सुबह हो


उसकी माँ ने
बसता और टिफिन पकडाया
मेरी माँ ने
झाडू कटका
उसे स्कूल बस मे चढाया
माँ ने मुझे
मालकिन का घर दिखलाया
जानती है वो
न गई तो पैसे कटेंगे
और हम भूखे रहेंगे
काश !
मै उजाले की
कोई किरण पकड पाती
तो मै भी
स्कूल बस मे चढ़ पाती


गिरा पुल
हजारों लोग मरे
रिश्वत ले नेता
पत्रकारों को बता रहा था
आतंक वादियों की
साजिश का अंदेशा जाता रहा था
दीवार पे लिखे
तम सो मा ज्योतिर्गमय के शब्द
इधर उधर हो रहे थे
फ़िर देखा तो लिखा था
ज्योति सो मा तमोग्म्य


बेटी होने की खुशी
अब सिर्फ़
वैश्याये मनाएँगी
समाज के ठेकेदारों के घर
बेटियाँ कोख मे
दफ़न कर दिजायेंगी
काश !
गर्भ का अन्धकार छोड़
वो दुनिया का उजाला देख पाती


2. एक बेरोजगार नौजवान


मैं आज का नौजवान
बेरोजगारी से
हूँ परेशान
व्यंग बाँण से बिधा
कटाक्ष से धायल
मैं उम्मीद मे इसकी
नजाने कितने जन्म
लेता रहा मरता रहा
लगा करलूं कुछ वयापार
संग आपने दूँ
औरों को भी रोजगार
विचार आया
खोल लूँ
एक दुकान
जहाँ पे ग्राहक
सच मे
समझा जाएगा भगवान
समान होगा शुध
देने होंगे वाजिव दाम
ईमानदारी से होगा
जहाँ सब काम
इन्ही सपनों के साथ
ले बैंक से क़र्ज़
बनाईं हम ने आपनी दुकान
लोग आए
खूब बिका आपना समान
लगा के
जल्दी ही चुका दूँगा क़र्ज़
पूरा कर पाउँगा
सारा फ़र्ज़
दूसरे दिन देखा
लगी थी दुकान पे भीड़ भरी
असली था समान
इसीलिए आई है जनता सारी
पंहुचा वहां
तो रह गया हैरान
लौटा रहे थे
लोग आपना समान
देशी घी खा के तेरा
बीमार है पूरा घर मेरा
तेल मे है
अलग सी गंध
मसलों मे है
कुछ ज्यादा सुगंध
सारे समान का बुरा है हाल
ख़राब है तुम्हारा पूरा माल
अरे भाई साहब !
तभी तो है इतना कम दाम
मैं कहता रहा
असली है एकदम असली है हर समान
ज्यादा मुनाफा चाहता नही
इसीलिए रखा कम दाम
पटक समान
चला गया हर इन्सान
मैं बैठा रहा
हो के परेशान
नकली असली मे
कुछ इस कदर घुल चुका था
मिलावटी समान का स्वाद
जिव्हा पे कुछ इसकदर चढ़ चुका था
के हर कोई
असली को नकली
समझ रहा था
बगल के दुकानदार ने कहा
करो थोडी मिलावट
और बढ़ा दो दाम
चल निकलेगी तुम्हारी दुकान
माँ की बीमारी ,पिता का चेहरा
याद आया सब कुछ
फ़िर भी बेच न पाया
मैं आपना इमान
रोजगार कार्यालय की
लम्बी कतार मे
फ़िर खड़ा हो गया
मैं एक भारतीये नौजवान


3.ज़िंदगी


क्या चीज है ?कैसी है ?
और
किस हाल मे है ज़िंदगी
फूलों मे बसी या
बिखरी है खुशबुओं मे
या काँटों की बिच फसी है ज़िंदगी


सांसों के तार से बुनी है
या धडकनों मे बसी है
या लाशों के बिच पलती है ज़िंदगी


सुख की सहिली है
या खुशियों से खिलती है
या गम की चादर से ढकी है ज़िंदगी


तुम को मिली है क्या ?
किसीने देखि है क्या ?
या फ़िर मुझसे ही छुपी है ज़िंदगी


चाँद की किरण है
या शीतल पवन है
या झुलसते तन सी है ज़िंदगी


लोगों के बिच मिलती है
या लोगों मे मिलती है
या फ़िर विरानो मे भटकती है ज़िंदगी


अपनों की आस है
या प्यार की प्यास है
या टूटते रिश्तों का अहसास है ज़िंदगी


महलों के गुम्बदों मे
या घर के आंगन मे
या झोपडी के दिए मे जलती है ज़िंदगी


4.दुआ


सूखे से तरसी आंखों ने
मांगी दुआ वर्षा की
पानी बरसा और बरसता ही चलागया
सब खुछ बहा गया
कुछ यूँ कबूल होती है
दुआ गरीबों की


5. बटवारा


घर ,धन ,वृद्ध आश्रम के खर्चे
यहाँ तक के कुत्ते भी बटें
पर पिता के त्याग ,प्यार
माँ के आँसू ,दूध ,और पीडा
का कुछ मोल न लगा
क्यों की पुरानी,घिसी चीजों का
कुछ मोल नही होता


6. शोर


चहुँ और है शोर बहुत
भीतर बहार हर ओर
तभी सुनाई नही देती
हिमखंड के पिघलने की आवाज़
गाँव के सूखे कुंए की पुकार
धरती में नीचे जाते
जल स्तर की चीख


7. समीकरण


माँ पिता पालते हैं
चार बच्चे खुशीसे
पर चार बच्चों पे
माँ पिता भारी है
ये कलयुग का समीकरण है


8. विस्फोट


दर्द चीखा
लहू बहा
शहर काँपा
दुनिया के नक्शे पे
भारत थरथराया
राम हुआ शर्मिंदा
रहीम ने सर झुकाया


लाशों की भीड़ में खड़ी
माँ भारती रो रही
चिता जलाऊँ किस के लिए
बनाऊँ कब्र किसकी
मानव मानवता
धर्म धार्मिकता
देश देशभक्ति
है कौन यहाँ
हुई हो न मौत जिसकी

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