कवि: मयंक सक्सेना
जन्म: लखनऊ में १९८४ में, पत्रकारिता से जीवन यापन, वर्तमान में ज़ी न्यूज़ में कार्यरत। प्रसारण पत्रकारिता से परास्नातक एवं कई पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर कई लेख कवितायेँ प्रकाशित।
बिन तेरे हर बात तनहा
मैं भी तन्हा, रात तन्हा
ज़िंदगी के खेल में अब
कैसी शह और मात तन्हा
बाग़ कैसा बाग़बां बिन
गुल भी तन्हा, पात तन्हा
वक़्त वो भूला नहीं है
मैं था तेरे साथ तन्हा
क्या कहें हम हो गए हैं
छोड़ तेरा हाथ तन्हा
ज़िंदगी की मुश्किलों में
तुम थे एक सौगात तन्हा
बिन तेरे हम खोजते हैं
अपनी तो औकात तन्हा
यूं तो दुनिया में मिलेंगे
तुमको कई हज़रात तन्हा
पर किसी में दिख जो जाए
हम सी इक भी बात तन्हा
रास्ता कट जाए जल्दी
खत्म हों हालात तन्हा
यूं तो अब तक हो चले हैं
अपने सब जज़्बात तन्हा
सोचता हूं फिर भी एक दिन
तुमसे हो मुलाक़ात तन्हा
मयंक सक्सेना
mailmayanksaxena@gmail.com
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1 comment:
Very nice... कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!
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