नहीं है कोई भी,
किसी के साथ
फिर भी करते हैं
साथ निभाने की बात
दिन-रात
अगर कभी हुए भी साथ
करते हैं
एक दूसरे पर आघात
2.
जीवन की
पगडंडी पर
चलता है आदमी
कभी धीरे
कभी हँसते
कभी रोते
कभी सुख में
कभी दुःख में
कभी धैर्य से
कभी हांफते
कभी भागते
समझ नहीं आता
क्या हम सब करते हैं
यह मृत्यु के वास्ते।
3.
जब तक था
कर्म करने में सझम
तब तक रहा
कर्म के मर्म को
समझने में अक्षम
जब हुआ
समझ से सक्षम
हो गया
कर्म करने में अक्षम।
4.
असहज होकर
किये हुए
हर काम में
दुःख ही दुःख है
सहजता में
सुख ही सुख है।
5.
अकेला
हो गया हूँ
क्योंकि
भीड़ में
खो गया हूँ।
6.
मैं
का नाश
बनाता है
महान
'मैं'
के नाश से
होता है
ज्ञान
कर्ता से
जब बन जाता है
दृष्टा
तब
होता है ध्यान।
7.
न था
पहले पता
और
न है अब पता
कि होगा क्या
यह जानते हुए भी
निरर्थक सोचता हूँ
लिप्त कर्म का
अनर्थ
और निर्लिप्त कर्म का
अर्थ
फिर भी कर रहा हूं
कर्ता बनने की
चेष्टा व्यर्थ
यही से है
अनर्थ।
8.
जो रखते हैं
सब की खबर
वे होते हैं
स्वयं से बेखबर।
9.
बनने के लिए ज्योति
जलना तो पड़ेगा ही
बुझोगे तब
बनोगे विभूति
10.
सबसे बड़ा
धन
सधा हुआ
मन।
11.
सबसे बड़ी
विडम्बना है
कि आदमी नहीं बनना चाहता है
आदमी।
कवि परिचय:
'नमन' शीर्षक नामक श्री जयप्रकाश सेठिया का प्रथम काव्य संग्रह प्रकाशित । आप हिन्दी-राजस्थान साहित्य के माहन युग कवि श्रद्धेय श्री कन्हैयालाल सेठिया जी के ज्येष्ठ पुत्र हैं। आपको कवि हृदय विरासत में मिली है। आप पिचले 45 वर्षों से सतत लिखते रहें हैं।
अपरोक्त सभी कविताएँ इनकी प्रथम पुस्तक ' नमन ' से ली गई है। इस पुअस्तक की भूमिका डॉ.अरुण प्रकाश अवस्थी जी ने लिखी है। संपर्क: 6, आशुतोष रोड, एक तल्ला, कोलकाता - 700 020 मो. 09903086968
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1 comment:
बहुत ही अच्छा लिखे हैं.
बधाई हो.
http://popularindia.blogspot.com
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