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मंथन -रामजीलाल घोड़ेला ‘भारती’

आदमी के मन में
हर वक्त चलता है
विचार मंथन।
यह मंथन
उसके अपने
संजोये कर्मों
भविष्य के सपनों
उगते सूर्य
चमकते सितारों
निहारती नजरों
उफनते समन्दर
कांपती धरा का
ही तो है।
यह मंथन
उसकी शंकाओं
मन के भ्रम
जीवन की आशा
हृदय का विश्वास
उपजे सद विचारों
चेतन भावनाओं
परिपक्व संवेगों
को उल्लेखित करता है।
यह मंथन
उसके पीढ़ियों के
संस्कारों
उसके परिश्रम
वर्षों के संघर्ष
जन्म जन्मांतरों के
संचित कर्मों
का ही तो है।
यह मंथन
अपने गुण
दूसरों के दोष
सुबह शायं
लम्बी होती छाया
काया में छिपी
कामनाओं का
ही तो है।
यह मंथन
बढ़ती हिंसा
पांव पसारता
क्रूर आतंक
आदमी का
घटता मूल्य
निर्दोषों की हत्या
हाफते लोगों
क्रंदन करते बच्चों
का ही तो है।


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