भारत माता के आंचल में, गंदे दाग लगाओगे।
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम, भारत माता की छाती।
बांट रहे टुकड़ों-टुकड़ों में, ये क्यों ज़ालिम उत्पाती।
इनसे हाथ मिलाकर बोलो, क्या हासिल कर पाओगे।
भारत माता के आंचल में, गंदे दाग लगाओगे।
क्या-क्या सोच-सोचकर, माँ ने तुमको जन्म दिया होगा।
तेरे लालन-पालन में, कितना श्रम होम किया होगा।
उसका सीना छलनी करके, तुम कैसे जी पाओगे।
भारत माता के आंचल में, गंदे दाग लगाओगे।
जाति-पाँति, मजहब का माता, भेद नहीं स्वीकारती।
अपनी गोदी में लेकर वह, सबको सदा दुलारती।
ऐसी माँ को दुःख पहुँचाकर, तुम कैसे सुख पाओगे।
भारत माता के आंचल में गंदे दाग लगाओगे।
बोली-भाषा, क्षेत्रवाद पर लहू बहाने वालों।
समझो ना कमजोर किसी को, खुद को जरा सम्भालो।
तुम भी चंगुल में आ सकते, भाग कहाँ जाओगे।
भारत माता के आंचल में, गंदे दाग लगाओगे।
देश बचा तो जीने का हक, तुमको मिला रहेगा।
वरना गन्दी करतूतों का, तुमको गिला रहेगा।
ऐसा सबक सिखा देंगे, तुम सिर धुन-धुन पछताओगे।
भारत माता के आंचल में, गंदे दाग लगाओगे।
बोलो आततायी बोलो, कितना खून बहाओगे।
भारत माता के आंचल में, गंदे दाग लगाओगे।
रचयिता का संपर्क पता:
डॉ. मोहन आनन्द
सुन्दरम् बंगला, 50 महाबली नगर
कोलार रोड भोपाल (म.प्र.)
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