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दीपान्विता -रामनिरंजन गोयनका

हे दीपान्विता
कर दो तुम गहन अमावस्या का तिमिर विच्छिन्न
कर दो हमारा अन्तर्मन आलोकित
हे दीपमालिके
तुम हो राष्ट्रमाता की दिव्य आरती
हमारी सभ्यता संस्कृति की निर्मल धारा
कामाख्या भुवनेश्वरी नारायणी पार्वती
दुर्गा काली लक्ष्मी सरस्वती विश्वभारती
तुम केवल दीपोत्सव नहीं
तुम हो एक मानसिक स्थिति
एक दिशा और अनुभूति की चमक
समर्पण का भाव और जीवन की परिभाषा
कोटि कोटि भारतवासियों के प्राणों की अभिलाषा
दीवार और द्वारों पर सज्जित दीपमाला
हमारे अन्तःकरण में प्रज्जवलित
ज्ञानदीप की एक विस्तारित श्रृंखला हो
दीपावली है वस्तुतः हमारे भावना दीप की
सत्य शाश्वत आन्तरिक अभिव्यक्ति
जो हमारी चक्षुसीमा के पार तक को
आलोकित और प्रकाशित करती है
और हमें सुपथ की ओर प्रेरित करती है।
दीपावली पर हम करते हैं
परंपरागत कागज और कलम की पूजा
किन्तु संपदा की स्याही और श्रम की कलम से
साधना की माटी पर हस्ताक्षर करना ही होगा
व्यश्टि से ऊपर उठकर समष्टि के लिये पूजा
दीपावली की ज्ञान ज्योति
मानव जीवन का श्रेष्ठतम पक्ष मुखरित करे।


क्या आप भी अपनी कविता दीपावली पर पोस्ट करना चाहते हैं? हाँ! तो देर किस बात की अभी तुरन्त हमें मेल कर दें।
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1 comment:

कुन्नू सिंह said...

दिपावली की शूभकामनाऎं!!


शूभ दिपावली!


- कुन्नू सिंह