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फणीन्द्र कुमार पाण्डेय की दो कविताएँ

1. आशीर्वाद
आशीर्वाद करे तुम्हें चित्त-चोर।
तुमको आशीर्वादित करे चित्त-चोर।
राधा के नायक प्रेम साधक नन्द किशोर।।
समाज का करे समुचित विकास-समाज विकास।
दुर्भावनाओं का हो मानव मन से निकास।।
सुमनों की सर्वत्र फैले सर्वत्र सुवास।
सबके हृदयों से निकले देश प्रेम की श्वास।।
फणीन्द्र का हो जावे सफल-विश्वास।
मम कविता सुमन से बिखरे देश प्रेम की सुवास।।
यत्र-तत्र सर्वत्र फैले पत्रिका समाज विकास।
हटावे लेखनी से जन-जन का त्रास।।
हो जावे सबको पत्रिका की च्प्राश।
ऐसा जीते ये जनता का विश्वास।।
भावे तो इसे तुम प्रकाशित कर देना।


2. महाकाली का भैरवी गान

पाक अधिकृत कश्मीर हो आजाद
आध्यात्मिकता पूर्ण हो समाज-विकास।
हो सब में श्री राम का अब निवास।।
मातृभाव का हो मानव हृदय में प्रकाश।
राष्ट्रीयता को हो समर्पित हर श्वास।।
आतंकवाद का करने को शीघ्र हरास।
बच्चा-बच्चा बन जावे वीर-सुभाष।।
आतंकवाद का खत्म हो जावे राज।
झेले न त्रासदी फिर से होटल ताज।।
सर्वत्र हो फिर से भारत में राम-राज।
आतंकवाद न बिगाड़ने पावे कोई काज।।
सुख शान्ति की यत्र-तत्र-सर्वत्र चले रेल।
नेता जवाब दें-आतंकवाद का बन कर पटेल।।
आतंकवाद का न झेले-अब कोई क्लेश।
करो ऐसा कारगर उपाय कहता तुम से देश।।
शान्ति की बातें क्या सुने ये दुष्ट शैतान।
कहता यही हमसे महाकाली का भैरवी गान।।
कहते हमसे कर्मशील बन कर डटो फिर आज।
करो ऐसा काम जिससे पाक आ जावे बाज।।
यही कहते भगत-बोस-बाई, और आजाद।
पाक अधिकृत कश्मीर को अब कराओ आजाद।।


-फणीन्द्र कुमार पाण्डेय, सल्ला सिमल्टा
चम्पावत-262523, उत्तराखण्ड

मंथन -रामजीलाल घोड़ेला ‘भारती’

आदमी के मन में
हर वक्त चलता है
विचार मंथन।
यह मंथन
उसके अपने
संजोये कर्मों
भविष्य के सपनों
उगते सूर्य
चमकते सितारों
निहारती नजरों
उफनते समन्दर
कांपती धरा का
ही तो है।
यह मंथन
उसकी शंकाओं
मन के भ्रम
जीवन की आशा
हृदय का विश्वास
उपजे सद विचारों
चेतन भावनाओं
परिपक्व संवेगों
को उल्लेखित करता है।
यह मंथन
उसके पीढ़ियों के
संस्कारों
उसके परिश्रम
वर्षों के संघर्ष
जन्म जन्मांतरों के
संचित कर्मों
का ही तो है।
यह मंथन
अपने गुण
दूसरों के दोष
सुबह शायं
लम्बी होती छाया
काया में छिपी
कामनाओं का
ही तो है।
यह मंथन
बढ़ती हिंसा
पांव पसारता
क्रूर आतंक
आदमी का
घटता मूल्य
निर्दोषों की हत्या
हाफते लोगों
क्रंदन करते बच्चों
का ही तो है।


सी/ओ राज क्लॉथ स्टोर,
लूनकरनसर-334603, बीकानेर (राज.)

नववर्ष मंगलमय हो ! - डॉ. अनिल शर्मा ‘अनिल’

नववर्ष मंगलमय हो,
नववर्ष मंगलमय हो।
तुम्हें नयी नयी खुशियाँ मिलें।
खुशियों के फूल खिलें।।
वो पथ बन जायें सुगम।
जो पथ कंटकमय हो।।
नववर्ष मंगलमय हो,
नववर्ष मंगलमय हो।
तुम जाओ जहाँ भी कहीं।
खुशियाँ बरसाओ वहीं।।
निर्भय हो काम करो।
नहीं कोई भी भय हो।।
नववर्ष मंगलमय हो,
नववर्ष मंगलमय हो।
तुम गाते रहो प्रेमगीत।
बन सब के हिय के मीत।।
कुछ नये-शब्द तुम दो।
और कोई नयी लय दो।।
नववर्ष मंगलमय हो,
नववर्ष मंगलमय हो।
- डॉ. अनिल शर्मा ‘अनिल’

‘‘स्वप्न’’ - देवेन्द्र कुमार मिश्रा

सपना तब होता है सपना
जब खुलती है नींद
चलते स्वप्न बिल्कुल
सच्चाई होते हैं
जीवन की तरह।
दुःख है तो है
सुख है तो है
सपना चल रहा है
जो घट रहा है
वो सही है।
अब ये तो नींद खुलने
पर निर्भर है
कि सब अपना लगे।
नींद आ गई है
सपने सत्य हैं
स्वप्न में ही जीवन है मरण है
नींद जो लम्बी है
लगता है
कभी खुलती भी है
तो आँख बन्द कर लेता हूँ
इस आस से कि शायद
कोई अच्छा सुख मिल जाये।
नींद की आदत पड़ गई है
न टूटे तो बेहतर
और खुल गई जिस दिन आँख
उस दिन सब स्वप्न
चाहे जीवन ही क्यों न हो।


- जैन हार्ट क्लीनिक के सामने
एस. ए. एफ. क्वार्टर्स बाबू लाईन, परासिया रोड
छिन्दवाड़ा (म.प्र.) - 480001, मोबाइल: 9425405022

मांड - ताऊ शेखावाटी

ठंडी, ताराँ छाई रात, कराँ दोय बात
सजन घर आओ सा!
म्हारै हिवड़ै रा रूप हजारा, पिउ प्यारा
घर आओ सा!
दरखत हो’गी दूबड़ी सा! चढ़ र’यो जोबन ज्वार
ऊमर घूमर घाल री सा! गावै रूप मल्हार
बरसै बैरस रुत बरसात
हियो हुळसात
सजन घर आओ सा!
अळियाँ गळियाँ कँवळी कळियाँ, उर उनमाद भरै
नुगरा भँवरा ओपरा सा! नित कुचमाद करै
बैठ्या चोर लगायाँ घात
तकै दिन रात
सजन घर आओ सा!
मळ-मळ न्हाया, मलमल पै’री, पल-पल डीक्या सा!
माँड्या मैहँदी माँडणा सब थाँ बिन फीका सा!
सुपनै में ही घड़ी स्यात
करण दो बात
सजन घर आओ सा!

Tawoo Shekhawati
रचयिता का संपर्क पता:
- ताऊ शेखावाटी
32, जवाहर नगर, सवाई माधोपुर-322001
Mobile No. 09414270336/ 09414315094

खून बहाओगे -डॉ. मोहन ‘आनन्द’

बोलो आततायी बोलो, कितना खून बहाओगे।
भारत माता के आंचल में, गंदे दाग लगाओगे।
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम, भारत माता की छाती।
बांट रहे टुकड़ों-टुकड़ों में, ये क्यों ज़ालिम उत्पाती।
इनसे हाथ मिलाकर बोलो, क्या हासिल कर पाओगे।
भारत माता के आंचल में, गंदे दाग लगाओगे।
क्या-क्या सोच-सोचकर, माँ ने तुमको जन्म दिया होगा।
तेरे लालन-पालन में, कितना श्रम होम किया होगा।
उसका सीना छलनी करके, तुम कैसे जी पाओगे।
भारत माता के आंचल में, गंदे दाग लगाओगे।
जाति-पाँति, मजहब का माता, भेद नहीं स्वीकारती।
अपनी गोदी में लेकर वह, सबको सदा दुलारती।
ऐसी माँ को दुःख पहुँचाकर, तुम कैसे सुख पाओगे।
भारत माता के आंचल में गंदे दाग लगाओगे।
बोली-भाषा, क्षेत्रवाद पर लहू बहाने वालों।
समझो ना कमजोर किसी को, खुद को जरा सम्भालो।
तुम भी चंगुल में आ सकते, भाग कहाँ जाओगे।
भारत माता के आंचल में, गंदे दाग लगाओगे।
देश बचा तो जीने का हक, तुमको मिला रहेगा।
वरना गन्दी करतूतों का, तुमको गिला रहेगा।
ऐसा सबक सिखा देंगे, तुम सिर धुन-धुन पछताओगे।
भारत माता के आंचल में, गंदे दाग लगाओगे।
बोलो आततायी बोलो, कितना खून बहाओगे।
भारत माता के आंचल में, गंदे दाग लगाओगे।


रचयिता का संपर्क पता:
डॉ. मोहन आनन्द
सुन्दरम् बंगला, 50 महाबली नगर
कोलार रोड भोपाल (म.प्र.)

हेली! (आत्मा) - ताऊ शेखावाटी

हेली जलम्यो है बो मरसी, ईं में बोल राम के करसी।
मंदिर धोक’र चाए मसजिद, गुरुद्वाराँ अरदास कर्याँ नित।
काम न आणी कोई भी बिध, तूँ जितणी भी करसी।
हेली! जलम्यो है वो मरसी, जग में जीव जळम निज पाताँ।
लेखो लेती हाथूँ-हाथाँ, साँस जिता घालै बेमाता।
उतणा लेणा पड़सी, हेली! जळम्यो है बो मरसी।
क्यूँ हो’री है करड़ी-काठी, काळचक्र गति जाय न डाटी।
सब नैं हीं मिलणो है माटी, घींस्यो हो या घड़सी।
हेली! जळम्यो है बो मरसी, होणी कदै टळै नीं टाळी।
रीत सदाँ स्यूँ आई चाली, पल्लव नुवाँ उगंताँ डाळी।
पात पुराणाँ झड़सी, हेली! जळम्यो है बो मरसी।

Tawoo Shekhawati
रचयिता का संपर्क पता:
- ताऊ शेखावाटी
32, जवाहर नगर, सवाई माधोपुर-322001
Mobile No. 09414270336/ 09414315094

मांग सकेंगे क्षमा वतन से - मधुर गंजमुदाराबादी

केवल तन से मिलना क्या है, आज मिलें हम अन्तर्मन से।
प्रेम भाव का शुचि प्रवाह हो, दूर रहें हर द्वेष-जलन से।।
वर्ण भले ही अलग-अलग हो, अलग-अलग हो बोली-बानी।
किन्तु हृदय में स्नेह-भाव की, बहे सतत् धारा कल्याणी।।
अब कल्याण नहीं हो सकता, इस कोरे बाहरी मिलन से।
एक दूसरे के पर्वों को, मिलकर अपना पर्व बनाएँ।।
छँटे घना असान अँधेरा, हिलमिल होली-ईद मनाएँ।
साल-साल मुस्काना सीखें, उपवन के हर एक सुमन से।।
कोई भटके नहीं कहीं पर, सारे सूत परस्पर जोड़ें।
समरसता के व्यवहारों में, राजनीति का नाटक छोड़ें।।
विनय, दया, करुणा अपनाएँ, बहें सुवासित मलय पवन से।
राहें भले अलग हों सबकी, किन्तु लक्ष्य है एक सभी का।।
कम न सिवईयों की मिठास हो, रंग न हो होली का फीका।
चूक गए तो क्या कह कर हम, माँग सकेंगे क्षमा वतन से।।

- हितैषी स्मारक सेवा समिति
गंजमुरादाबाद-उन्नाव, उ0प्र0-41502

भूतपूर्व - रामनिरंजन गोयनका

हम भूतपूर्व होते, आराम से सोते
चाहे देश की चिन्ता से ना हो सम्बन्ध
भूतपूर्व की सुरक्षा के रहते कड़े प्रबन्ध
सुरक्षा भी करोड़ों की ब्लेककैट की आन-बान
भूतपूर्व के बंगले की महल जैसी शान
घर बैठे ऊपर से पेंशन पाते
जहां भी चाहते हवाई जहाज उड़ाते
वर्तमान के हौसले जहां होते थे पस्त
भूत के सहारे पूर्व रहते मस्त-मस्त
हम भी भूत होते सरकार हमारी भी चिन्ता करती
हमारी काली कुतिया तक भूखी नहीं मरती
एक बंगला मिल जाता सुन्दर सा न्यारा
शाक सब्जी फलों का बगीचा प्यारा-प्यारा
हमारी भी सुरक्षा के होते कड़े प्रबन्ध
चाहे फिर हमारा किसी भी खतरे से ना हो सम्बन्ध
वर्तमान से भूत प्राप्त करने के कई फायदे हैं
कहीं उपलब्धि तो कहीं झूठे वायदे हैं
भूत का वर्तमान को रखना पड़ता है ध्यान
कम्बख्त कहीं मुँह ना खोलदे ना करदे बदनाम
न जाने कब कौन सी फाईल खुलवादे
कौन से पुराने कागजों की फोटो कॉपी निकलवादे
इसलिये भूत को चुप रखना जरूरी है
वर्तमान को भी भूत होना उसकी शाश्वत कमजोरी है।

रामनिरंजन गोयनका,फैंसी बाजार, गुवाहाटी(असम)

ब्याह को पंडाल - राधेश्याम पोद्दार

(मारवाड़ी भाषा में)


गरीबाँ की छोर्याँ सिसक रही, थे लाखाँ को पंडाल बणायो।
घड़ी दो घड़ी शोभा करली, पण कोई क काम न आयो।
घणी छोरियाँ क्वाँरी बैठी, वह नहीं अगणित पीसो पायो।
मात पिता गुजरान कर है, घुट-घुट करके जनम गँवायो।
थे समाज स पीसो पायो, पर समाज-हित में न लगायो।
पेट भर कुत्तो भी निजको, इसमं कौन बड़ाई पायो।
देख्या देखी क सौद मं, थे तो धन न व्यर्थ गमायो।
ऊंडी बात बिचारी कोनी, बणिया होकर घाटो खायो।
मन में थे लक्ष्मीपति विष्णु, रत्ती भर भी नहीं सहिष्णु।
दो पीसा भी दिया किसी न, तो उसन दस बार गिणायो।
चंचल लक्ष्मी सदा न रहणी, चोखा चोखा काल समायो।
धन धरती नहीं संग में चाली, क्यूं बडपन को ढ़ोंग रचायो।
बहती गंगा हाथ पखालो, बारम्बार न मौको पायो।
धन की तीजी गति निश्चित है, झूठो थे मन न भरमायो।
गरीबाँ की छोर्याँ सिसक रही, थे लाखाँ को पंडाल बणायो।


2. दहेज-उन्मूलन का उपाय


दहेज उन्मूलन के लिये, सभा हुई बहु बार।
नेताओं ने भी दिया, भाषण धुआँधार।
फोटो खिंचवाये बहुत, नाम छपा अखबार।
माला से ग्रीवा भर गई, तालियों का अम्बार।
किन्तु मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों किया उपचार।
दहेज बढ़ता ही गया, सुरसा मुख सा हर बार।
त्याग औषधि रोग की, जिसका न किया व्यवहार।
भाषण से नहीं उतरता, दहेज का प्रबल बुखार।
नेता भी है अनेकजन, उनके पुत्रों का अम्बार।
किसी पुत्र के ब्याह में, दहेज न त्यागा यार।
भीतर ही भीतर लिया, नहीं लोग दिखावन हार।
खातिर में लगवा लिया, दस बीस लाख का सार।
बाकी कन्या के नाम से, लिया दहेज भरमार।
इसी भाँति घर भर लिया, ले बहुमूल्य उपहार।
मुखौटा समाज सुधार का, समाज बिगाड़नहार।
सिर्फ भाषण में ही त्याग है, दहेज मिटावनहार।
धनपतियों के ही यहाँ, किया ब्याह-व्यापार।
अन्तर्मन में कामना, मिले दहेज-भंडार।
बहु कन्याएँ समाज में, बैठी ब्याहनहार।
पर पैसा नहीं पास में, सद्गुण का भंडार।
उनके यहाँ पर जो करें, नेता ब्याह-व्यवहार।
तो दहेज मिट जाएगा, यही सत्य का सार।


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