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जागो भारत जागो -शम्भु चौधरी

जागो भारत जागो !
इंकलाब नया लाओ भारत।
जागो भारत जागो !

बन के पूजारी लोकतंत्र ये
लूट रहे मंदिर सब आज,
मिटा नहीं अस्तित्व देश का
नंगे बन फिरते सब साथ।

जागो भारत जागो !
इंकलाब नया लाओ भारत।
जागो भारत जागो !

अंधी - लंगड़ी - लूली हो गयी
देश की संसद, गूँगी हो गयी,
भारत का स्वाभीमान खो गया,
संसद का ईमान खो गया ।

जागो भारत जागो !
इंकलाब नया लाओ भारत।
जागो भारत जागो !

सोने की चिड़ियां भूखी-प्यासी,
दाने-दाने को तरस है खाती,
सांप्रदायिकता की आड़ में अब
तू-तू.....मैं-मैं गीत ये गाती ।

जागो भारत जागो !
इंकलाब नया लाओ भारत।
जागो भारत जागो !

इनके इरादे नेक नहीं अब,
लगा मुखौटे एक हो गये;
सत्ता के मद में
सबके सब अंधे जो हो गये।

खेत बेच दे, देश बेच दे,
सत्ता की जागीर बेच दे,
माँ का आँचल, दूध बेच दे,
बलदानी इतिहास बेच दे,
भगत सिंह का नाम बेच दे,
और बेच दे भारत को।

जागो भारत जागो !
इंकलाब नया लाओ भारत।
जागो भारत जागो !

अब अपनी ताकत पहचानो,
वोटों की ताकत को जानो,
घर-घर अलख जगा दो आज,
भ्रष्टाचार मिटा दो आज।

जागो भारत जागो !
इंकलाब नया लाओ भारत।
जागो भारत जागो !

द्वाराः शम्भु चौधरी, कोलकाता-700106

बदले हुए से लोग - डॉ रविन्द्र कुमार

बदले हुए से लोग

कभी ये बदली सी धरती,

तो कभी बदला सा आसमान देखता हूं।
वफा से कभी जो रहती थी गुलजार,
उन गलियों को मैं आज सूनसान देखता हूं।
खुदा से तो क्या खुद से दूर,
हर एक इन्सान देखता हूं।
कल तक थे जो घर,
आज मैं वो पत्थर के मकान देखता हूं।
जीतें थे जिनके दिलों में दोस्ती के कारवां,
आज मैं उन्ही के दिलों मे क्यूं समसान देख्ता हूं।
नन्हें से कदमों से चलते थे, दौडते थे हम,
उन राहों पर मैं मिटे से कुछ निशान देखता हूं।
बदल जाते है क्यूं लोग बस जमाने की रददो बदल में,
अधूरे उन्हीं के फिर भी मैं अरमान देखता हूं।
रोकता हूं, मैं जितना छलक ही आते है अश्क,
सपनो को जब हालातों से परेशान देखता हूं।

- डॉ रविन्द्र कुमार
ग्राम-वेदखेडी, पोस्ट- झिंझाना,
जिला- प्रबुद्ध नगर (उत्तर प्रदेश)

महंगाई देवी - डॉ रविन्द्र कुमार

हे महंगाई देवी तेरी महिमा है न्यारी,
तू है जनता पे आफत भारी।
किसी ने कहा है तुझको डायन,
किसी ने बोला है तुझको महामारी।
तेरे कारण उठा है जनता का चांटा,
सकते मे है अंबानी, बिरला व टाटा।
तेरी वजह से बिके है बंगले,
तूने ही गरीब की चढ्ढी उतारी।
तेरे कारण हुये है अनशन,
हुआ है परेशान जन जन।
तेरी वजह से बढे है कर्ज,
छूट गये पीछे कई फर्ज।
हे देवी सून ले तू,
ये करुण विनती हमारी।
सबको मिले दो वक्त की रोटी,
ना मुरझाये किसी झोंपडी की फुलवारी।
हे मंहगाई देवी बस सून ले तू,
ये इतनी विनती हमारी।


ग्राम-वेदखेडी, पोस्ट- झिंझाना,
जिला- प्रबुद्ध नगर (उत्तर प्रदेश)

ताजा अभी बनाया हूँ!

- डॉ॰ अजय नन्दन 'अजेय'



एक कविता मेरी सुन लो, ताजा अभी बनाया हूँ!
आदर्श श्रोता देख आपको, अभी जेहन में आया हूँ।
चैराहो सड़क पर गाता हूँ,
कुछ न कुछ सुनाता हूँ।
सुनता नहीं यदि कोई,
तो चाय भी उसे पिलाता हूँ।
‘‘वंस मोर’’ की आवाज से, मेरा मन हर्षाया है।
एक कविता मेरी सुन लो....2
मेरी अपनी ही रचना है,
कोई नकल नहीं भाई,
यह तो कॉपी राइट है मेरी,
पकड़ में कभी नहीं आयी।
इस एक कविता को मैंने, दर्जनों बार भुनाया है।

एक कविता मेरी सुन लो....2
मुझे सुनने से मतलब हैं
चाहे हो कोई भी छंद
अर्थ भले कुछ भी निकले,
चाहे दिमाग हो जाए बन्द,
हो मुक्त छंद या फिर तुकांत, मैंने तो सभी गाया है।
एक कविता मेरी सुन लो....2
उपाधिया तो मिली नहीं,
पन्ने किए बहुत काले।
हुआ घर के कामो से बेखबर..
तो बीबी ने भी सुना डाले।
ना घर का रहा ना घाट का, बस आपलोग का साया है।
एक कविता मेरी सुन लो....2
निरीह प्राणी न समझो कवि को,
वह तो राह बताता है।
घर को छोड़ सारी दुनिया को,
नसीहते याद कराता है।
शांति-क्रांति दोनों स्थितियों में बड़ा रोल निभाया है।
एक कविता मेरी सुन लो, ताजा अभी बनाया हूँ!
आदर्श श्रोता देख आपको, अभी जेहन में आया हूँ।

संपर्क का पताः
डॉ॰ अजय नन्दन ‘अजेय’
R.B - 149, RBI Colony,
R.k.Puram, New Delhi - 110022