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क्या लाये पापा इस बार

दीवाली तो आ गई पापा, क्या लाये इस बार

बच्चा बोला देखकर, सुबह सुबह अखबार

सुबह सुबह अखबार, कि पापा कपड़े नए दिलवा दो

मम्मी को एक साड़ी औ बहना को शूट सिलवा दो

और अपने लिए तो पापा, जो जी में आए लेना

पर घर का कोना कोना दीपों से रोशन करना

पापा ने सुन बात , कहा बेटे , क्या बतलाएं

डूब गई पूंजी शेयर में, कैसे दीप जलाएं

बेटा बोला, बुरा न मानो, तो एक बात बताएं

पैसे के लालच में पड़कर, क्यूँ पीछे पछ्ताएं

दादाजी भी तो कहते थे लालच बुरी बला है

शेयर नहीं सगा किसी का, इसने तुम्हे छला है

कोई बात नही पापाजी, यह लो शीतल पेय

बीती ताहि बिसरी देय, आगे कि सुधि लेय

चिराग-चमन चंडालिया

1 comment:

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma said...

आपकी कविता बहुत ही अच्छी लगी।
धन्यवाद।

दीपावली के अवसर पर ढेर सारी शुभकामनाएँ।



आओ हम मनाएं मिलकर दिवाली।

नहीं सोचें कभी किसी की बुराई॥
दिवाली में जलाएँ दिये, फैलाएँ रौशनी पर दिवाली में न जलाएँ पैसे>