• कविगण अपनी रचना के साथ अपना डाक पता और संक्षिप्त परिचय भी जरूर से भेजने की कृपा करें।
  • आप हमें डाक से भी अपनी रचना भेज सकतें हैं। हमारा डाक पता निम्न है।

  • Kavi Manch C/o. Shambhu Choudhary, FD-453/2, SaltLake City, Kolkata-700106

    Email: ehindisahitya@gmail.com


सीमा गुप्ता की कुछ कविताएँ


1. "नहीं"


देखा तुम्हें , चाहा तुम्हें ,
सोचा तुम्हें , पूजा तुम्हें,
किस्मत मे मेरी इस खुदा ने ,
क्यों तुम्हें कहीं भी लिखा नहीं .
रखा है दिल के हर तार मे ,
तेरे सिवा कुछ भी नही ,
किस्से जाकर मैं फरियाद करूं,
हमदर्द कोई मुझे दिखता नही.
बनके अश्क मेरी आँखों मे,
तुम बस गए हो उमर भर के लिए ,
कैसे तुम्हें दर्द दिखलाऊं मैं ,
अंदाजे बयान मैंने सीखा नही.
नजरें टिकी हैं हर राह पर ,
तेरा निशान काश मिल जाए कोई,
कैसे मगर यहाँ से गुजरोगे तुम,
मैं तुमाहरी मंजील ही नही,
आती जाती कोई कोई अब साँस है ,
एक बार दिल भर के काश देखूं तुझे,
मगर तू मेरा मुक्कदर नही ,
क्यों दिले नादाँ ये राज समझा नही ..............



क्रमांक सूची में वापस जाएं


2. "कभी आ कर रुला जाते"


दिल की उजड़ी हुई बस्ती,कभी आ कर बसा जाते
कुछ बेचैन मेरी हस्ती , कभी आ कर बहला जाते...
युगों का फासला झेला , ऐसे एक उम्मीद को लेकर ,
रात भर आँखें हैं जगती . कभी आ कर सुला जाते ....
दुनिया के सितम ऐसे , उस पर मंजिल नही कोई ,
ख़ुद की बेहाली पे तरसती , कभी आ कर सजा जाते ...
तेरी यादों की खामोशी , और ये बेजार मेरा दामन,
बेजुबानी है मुझको डसती , कभी आ कर बुला जाते...
वीराना, मीलों भर सुखा , मेरी पलकों मे बसता है ,
बनजर हो के राह तकती , कभी आ कर रुला जाते.........




क्रमांक सूची में वापस जाएं


3. याद किया तुमने या नहीं


यूँ ही बेवजह किसी से,
करते हुए बातें,
यूँ ही पगडंडियों पर
सुबह-शाम आते जाते
कभी चलते चलते
रुकते, संभलते डगमगाते..
मुझे याद किया तुमने
या नहीं ज़रा बताओ..
मुझे याद किया तुमने
या नहीं ज़रा बताओ।


सुलझाते हुए अपनी
उलझी हुई लटों को
फैलाते हुए सुबह
बिस्तर की सिलवटों को
सुनकर के स्थिर करतीं
दरवाज़ी आहटों को
मुझे याद किया तुमने
या नहीं ज़रा बताओ..


बाहों का कर के
घेरा,चौखट से सर टिका के
और भूल करके दुनियाँ
साँसों को भी भुलाके
खोकर कहीं क्षितिज
में जलधार दो बुलाके
मुझे याद किया तुमने
या नहीं ज़रा बताओ..
मुझे याद किया तुमने
या नहीं ज़रा बताओ..


सीढ़ी से तुम उतरते, या
चढ़ते हुए पलों में
देखूँगी छत से
उसको, खोकर के अटकलों में
कभी दूर तक उड़ाकर
नज़रों को जंगलों में
मुझे याद किया तुमने
या नहीं ज़रा बताओ..
मुझे याद किया तुमने
या नहीं ज़रा बताओ..


बारिश में भीगते तो,
कभी धूप गुनगुनाते
कभी आँसुओं का सागर
कभी हँसते-खिलखिलाते
कभी खुद से शर्म करते
कभी आइने से बातें
मुझे याद किया तुमने
या नहीं ज़रा बताओ..
मुझे याद किया तुमने
या नहीं ज़रा बताओ..


तुमसे दूर मैंने, ऐसे
हैं पल गुज़ारे,
धारा बिना हों जैसे
नदिया के बस किनारे..
बिन पत्तियों की शाखा
बिन चाँद के सितारे..
बेबसी के इन पलों
में...
मुझे याद किया तुमने
या नहीं ज़रा बताओ..
मुझे याद किया तुमने
या नहीं ज़रा बताओ..




क्रमांक सूची में वापस जाएं


4. मुलाक़ात


चलो कागज़ के पन्ने पर ही आज,
छोटी सी हसीं मुलाक़ात कर लें
कुछ पूरे, कुछ अधूरे लफ़्जों में फ़िर,
आमने सामने बैठ कर बात कर लें

कुछ अपनी कहें, कुछ तुमसे सुने,
दिल की बातें बे-आवाज़ सही,
एक साथ कर लें
आमने सामने बैठ कर बात कर लें

युग एक बीता जो हम साथ थे,
ना जाने कब से मिलने को बेताब थे,
इस मिलन की घड़ी को आबाद कर लें,
आमने सामने बैठ कर बात कर लें

वो बेकल पहर आ गया है,
मुझे सामने तू नज़र आ गया है,
एक ज़रा देर क़ाबू में जज़्बात कर लें
आमने सामने बैठ कर बात कर लें

एक दूजे में खो जाएँ आओ चलो,
फिर ना बिछड़ें कभी ऐसे मिल जाएँ चलो,
अब तो पूरी अपनी मुलाक़ात कर लें,
आमने सामने बैठ कर बात कर लें




क्रमांक सूची में वापस जाएं


5. तुम्हें पा रहा हूँ


तुम्हें खो रहा हूँ तुम्हें पा रहा हूँ,
लगातार ख़ुद को मैं समझा रहा हूँ

ना जाने अचानक कहाँ मिल गयीं तुम,
मैं दिन रात तुमको ही दोहरा रहा हूँ

शमा बन के तुम सामने जल रही हो,
मैं परवाना हूँ और जला जा रहा हूँ

तुम्हारी जुदाई का ग़म पी रहा हूँ,
युगों से मैं यूँ ही चला जा रहा हूँ

अभी तो भटकती ही राहों में उलझा,
नहीं जानता मैं कहाँ जा रहा हूँ

नज़र में मेरे बस तुम्हारा है चेहरा,
नज़र से नज़र में समा जा रहा हूँ

बेकली बढ़ गयी है सुकून खो गया है,
तुझे याद कर मैं तड़पा जा रहा हूँ

कहाँ हो छुपी अब तो आ जाओ तुम,
मैं आवाज़ देता चला जा रहा हूँ




क्रमांक सूची में वापस जाएं


6. तन्हाई


काँटों की चुभन सी क्यों है तन्हाई,
सीने की दुखन सी क्यों है तन्हाई,
ये नज़रें जहाँ तक मुझको ले जायें,
हर तरफ़ बसी क्यों है सूनी सी तन्हाई,
इस दिल की अगन पहले क्या कम थी,
मेरे साथ सुलगने लगती क्यों है तन्हाई
आँसू जो छुपाने लगता हूँ सबसे,
बेबाक हो रो देती क्यों है तन्हाई
तुझे दिल से भुलाना चाहता हूँ,
यादों के भँवर मे उलझा देती क्यों है तन्हाई
एक पल चैन से सोना चाहता हूँ,
मेरी आँखों में जगने लगती क्यों है तन्हाई
तन्हाई से दूर नहीं अब रह सकता,
मेरी साँसों में, इन आहों में,
मेरी रातों में, हर बातों में,
मेरी आँखों में, इन ख़्वाबों में,
कुछ अपनों में, कुछ सपनो में,
मुझे अपनी सी लगती क्यों है तन्हाई ?





ऊपर जाएं  


सीमा गुप्ता का परिचय:




जन्म : अम्बाला (हरियाणा) शिक्षा : एम.कॉम. लेखन और प्रकाशन : अपकी पहली कविता “लहरों की भाषा" चौथी कक्षा में लिखी थी जिसे की बहुत सराहा गया। यहीं से आपको लिखने के लिए प्रोत्साहन मिला। इनकी कई कविताएँ और ग़ज़लें पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। आपकी अधिकतर कविताओं में पीड़ा, विरह, बिछुड़ना और आँसू होते हैं; क्यों – शायद इनके अन्तर्मन से उभरती इन कविताओं में कुछ खास कहने को है जो हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है। आपकी कई कविताएँ अंतरजाल पर “हिन्दी युग्म" में भी प्रकाशित हो चुकी हैं। आपने उद्योग जगत पर ख्याति प्राप्त दो पुस्तकें भी लिखीं हैं, ये दोनों पुस्तकें राष्ट्रीय स्तर पर उद्योग जगत में काफी चर्चित रही। प्रथम पुस्तक का नाम है - "GUIDE LINES INTERNAL AUDITING FOR QUALITY SYSTEM" (प्रकाशित:2000 में) और दूसरी पुस्तक "GUIDE LINES FOR QUALITY SYSTEM AND MANAGEMENT REPRESENTATIVE" (प्रकाशित: 2001 में) है। संप्रती : जनरल मैनेजर (नवशिखा पॉली पैक), गुड़गाँव

संपर्क:





क्रमांक सूची में वापस जाएं

1 comment:

Katha-Vyatha said...

दिल की उजड़ी हुई बस्ती,कभी आ कर बसा जाते
कुछ बेचैन मेरी हस्ती , कभी आ कर बहला जाते...
सीमा जी, आप कमाल का लिखतीं हैं