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यदि तोर डाक शुने केउ ना आसे



कविवर रविन्द्रनाथ ठाकुर



[बंगला]

यदि तोर डाक शुने केउ ना आसे तॅबे एकला चलो रे।
तॅबे एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे।।
यदि केउ कॅथा ना कॅय, ओरे ओरे ओ अभागा,
यदि सबाइ थके मुख फिराये,
सबाई करे भय-तबे परान खुले,
ओ तुई मुख फुटे तोर मनेर कॅथा एकला बालो रे।।
यदि केउ कॅथा ना कॅय,
ओरे ओरे ओ अभागा,
यदि गहन पथे जावार काले केउ फिरे ना चाय- तबे पथेर काँटा,
ओ तुई रक्तमाखा चरणतले एकला दलो रे।।
यदि आलो ना धरे, ओरे ओरे ओ अभागा,
यदि झड़बादले आँधर राते दुआर देय घरे- तबे वज्रानले,
आपॅन बुकेर पाँजर ज्वालिये निये एकला ज्वलो रे।।




[हिन्दी में रूपान्तर]

तेरी आवाज पे यदि कोई न आये, तो फिर चल अकेला रे।
तो फिर चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला रे।।
यदि कोई भी न बोले, ओरे ओरे ओ अभागे,
यदि सभी मुख मोड़े रहें,
सब डरा करें, तब डरे बिना,
तेरे मन की बात, मुक्त-कण्ठ, कह अकेला रे।।
यदि लौट जायें सभी, ओरे ओरे ओ अभागे,
यदि गहन डगर चले, देखे मुड़ के न कोई तब राहों के कांटे,
ओ तू रक्त - रंगे, चरण - तले, दल अकेला रे।।
यदि दीप न धरें, ओरे ओरे ओ अभागे,
झड़ी - आँधी - भरी रात में, घर बन्द यदि करें तब वज्र -
शिखा से तू अपनी अस्थियाँ जला और जल अकेला रे।।



Translated In Hindi by : Dawlala Kothari

अरमानों का टकराव-कुंवर प्रीतम

अंतस में उफनते
अरमानों का टकराव
हर रोज होता है
हालात से
और कुरुक्षेत्र बना
हृदयस्थल फिर
ढूंढने लगता है
उसी कृष्ण को
जिसने दिया था संदेश
कर्मण्येवाधिकारस्ते का।
गीता में कहे बोल
गूंजने लगते हैं
प्रेरणा बनकर
देते हैं पाथेय
और समा जाते हैं
शनैः शनैः
हृदय में
फिर दस्तक देते हैं
आत्मा के आंगन में
अंततोगत्वा
उफनते अरमानों का टकराव
पा जाता है समाधान
और निकल पड़ता है
कर्म की पगडंडी पर।
कुंवर प्रीतम

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