क्यों पतली दाल न पूछो
मंहगाई का हाल न पूछो
क्यों है पतली दाल न पूछो
रुला रहे हैं बिजली-पानी
सड़क बनी घुड़साल, न पुछो
योजनाएँ तो हैं अरबों की
पर है कछुआ चाल न पूछो
जबसे बेटा बना दरोगा
खींच रहा है माल न पूछो
मंत्री से उनकी यारी है
खिचवा देगा खाल न पूछो
डाकू-थानेदार आजकल
मिला रहे सुर-ताल न पूछो
भ्रष्टाचार चरम सीमा पर
पुजा हुई कंगाल न पूछो
कवि का पता:
आचार्य भगवत दूबे
पता: पिसनहारी-मढ़िया के पास, जबलपुर(म.प्र.)
साभार: पनघट
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1 comment:
बहुत अच्छा
धन्यवाद.
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