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आज साथी बोल दो.... -प्रकाश चण्डालिया


मंच है प्रियवर तुम्हारा, भाव मन के खोल दो
जो बताना जग को चाहो, आज दिल से बोल दो
तुम न बोलोगे, जगत में बात फिर बोलेगा कौन
मिट ही जायेगा जहां, जो तुम रहे गुमसुम औ मौन
इस जहाँ को आज दिल के भाव से तुम तोल दो,
बोल दो, तुम बोल दो, आज साथी बोल दो....


प्रकाश चण्डालिया

अपना मंच से साभार

2 comments:

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma said...

इस जहाँ को आज दिल के भाव से तुम तोल दो,
बोल दो, तुम बोल दो, आज साथी बोल दो....

kavita bahut hi achchi lagi.
dhanyawaad.

ओमप्रकाश अगरवाला said...

कविता काफी अच्छी है. बधाई स्वीकार करें. इस कविता से मिलते जुलते भाव की एक कविता मैंने कभी पढ़ी थी- जो इस प्रकार है-

आदमी मरने के बाद
कुछ नही सोचता
आदमी मरने के बाद
कुछ नही बोलता

कुछ नहीं सोचने
और
कुछ नहीं बोलने से
आदमी मर जाता है.
(यह कविता संभवतः उदय प्रकाश जी की है)
ओमप्रकाश