श्यामसखा 'श्याम'
भला लगता है
आंगन में बैठना
धूप सेंकना
पर इसके लिये
वक़्त कहां ?
वक़्त तो बिक गया
सहूलियतों की तलाश में
और अधिक-और अधिक
संचय की आस में
बीत गये बचपन जवानी
जीवन के अन्तिम दिनों में
हमने वक़्त की कीमत जानी
तब तक तो खत्म हो चुकी थी
नीलामी
हम जैसों ने खरीदे
जमीन के टुकड़े
इक्ट्ठा किया धन
देख सके न
जरा आँख उठा
विस्तरित नभ
लपकती तड़ित
घनघोर गरजते घन
रहे पीते धुएं से भरी हवा
कभी देखा नहीं
बाजू मे बसा
हरित वन
पत्नी ने लगाए
गमलों में कैक्टस
उन पर भी
डाली उचटती सी नज़र
खा गया
हमें तो यारो
दावानल सा बढ़ता
अपना नगर
नगर का
भी, क्या दोष
उसे भी तो हमने गढ़ा
देखते रहे औरों के हाथ
बताते रहे भविष्य
पर अपनी
हथेली को
कभी नहीं पढ़ा
डॉ० श्यामसखा'श्याम' मौदगल्य का संक्षिप्त परिचय
जन्म-अगस्त २८,१९४८[अप्रैल १,१९४८विद्यालयी रिकार्ड में]
जन्म स्थान-बेरी वालों का पेच रोहतक
जननी-जनक: श्रीमति जयन्ती देवी,श्री रतिराम शास्त्री
शिक्षा -एम.बी; बी.एस ; एफ़.सी.जी.पी.
सम्प्रति- निजी नर्सिंग होम
लेखन-
भाषा- हिन्दी,पंजाबी,हरयाणवी व अंग्रेजी में
प्रकाशित पुस्तकें- ३ उपन्यास[नवीनतम-कहां से कहां तक-प्रकाशक-हिन्द पाकेट बुक्स]
२ उपन्यास ,कोई फ़ायदा नहीं हिन्दी,समझणिये की मर-
हरयाण्वी में साहित्य अकादमी हरयाणा द्वारा पुरस्कृत
३ कथा संग्रह-हिन्दी-अकथ ह.सा.अकादमी द्वारा-पुरस्कृत
१ कथा संग्रह इक सी बेला-पं.सा अका.द्वारा पु.
५ कविता संग्रह प्रकाशित-एक ह,सा.अ.द्वारा अनुदानित
१ ग़ज़ल संग्रह-दुनिया भर के गम थे
१ दोहा-सतसई-औरत वे पांचमां[हरियाण्वी भाषा की पहली दोहा सतसई]
१ लोक-कथा संग्रह-घणी गई-थोड़ी रही-ह.सा.अका.[अनुदानित]
१ लघु कथा संग्रह-नावक के तीर-ह.सा.अका[अनुदानित]
चार कहानियां ह.सा अका.२ तीन-पंजाबी सा.अका द्वारा पुरस्कृत
एक उपन्यास-समझणिये की मर'-एम.ए फ़ाइनल पाठ्यक्रम[कुरुक्षेत्र वि.विद्यालय मे]
मेरे साहित्य पर एक शोध-पी एच डी हेतु,तीन एम.फिल हेतु सम्पन्न।
सम्पादन-संस्थापक संपादक-मसि-कागद[प्रयास ट्रस्ट की साहित्यिक पत्रिका]-दस वर्ष से
कन्सलटिंग एडीटर-एशिया ऑफ़-अमेरिकन बिबिलोग्राफ़ीक मैगज़ीन-२००५ से
सह-संपादक-प्रथम एडिशन-रोह-मेडिकल मैगज़ीन मेडिकल कालेज रोहतक-१९६७-६८
सम्मान -पुरुस्कार
१ चिकित्सा- रत्न पुरस्कार-इन्डियन मेडिकल एसोशिएशन का सर्वोच्च पुरुस्कार-२००७
२ पं लखमी चंद पुरस्कार[ लोक-साहित्य हेतु]-२००७
३ छ्त्तीस गढ़ सृजन सम्मान[मुख्यमंत्री डॉ० रमन सिंह द्वारा]-२००७
४ अम्बिका प्रसाद दिव्य रजत अलंकरण-२००७
५-कथा बिम्ब-कथापुरस्कार मुम्बई,
६ राधेश्याम चितलांगिया-कथा पुरस्कार- लखनऊ
६ संपादक शिरोमिणि पु.श्रीनाथद्वारा-राजस्थान
सहित-लगभग २५ अन्य सम्मान पुरस्कार
अध्यक्ष[प्रेजिडेन्ट]=इन्डियन मेडिकल एसोशियेशन हरियाणा प्रदेश;२साल१९९४-९६
संरक्षक- इंडियन,मेडि.एसो.हरियाणा-आजीवन
सदस्य-रोटरी इन्टरनेशनल व पदाधिकारी
सदस्य कार्यकारणी-गौड़ब्राह्मण विद्याप्रचारणी सभा
सम्पर्क- मसि-कागद १२ विकास नगर रोह्तक १२४००१
घुमन्तू भाष-०९४१६३५९०१९ .
E-Mail:shyamskha@yahoo.com
4 comments:
Bahut hi sundar.. bahut pyari kavita
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मेरी पहली कविता...... अधूरा प्रयास
पत्नी ने लगाए
गमलों में कैक्टस
उन पर भी
डाली उचटती सी नज़र
वाह क्या कहा है इन शब्दों में आपने।
बधाई!
खा गया
हमें तो यारो
दावानल सा बढ़ता
अपना नगर
यही तो सच है सखा जी .बीते वक्त को याद कर कर के रोना ही रह गया है .बढ़ते भौतिकवाद और शहरीकरण की अन्धाधुन्द दौड़ ने जंगलो को भी खा लिया और खुली सोच को भी . प्रदूषणही प्रदूषण है सब और ,आपकी कविता से एक सोच भी मिलती है एक समाधान भी. पर्यावरण को सहेजने की बहुत आवश्यकता है.श्री अशोक कुमार जी अम्बाला वाले के श्रीमुख से बहुत बार आप का जिक्र सुन चूका हूँ, आज आप को पढ़ भी लिया बहुत प्रसन्नता हुई .बहुत अच्छा लिखते है आप और भी पढने की जिज्ञाषा है .....
...सुरेन्द्र कुमार अभिन्न...
बेहतरीन रचना
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