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इंसान - स्मृति दुबे



मुआफी चाहती हूँ काफी समय हुए कुछ लिख नहीं पायी.......लेखन वाकेई आसान कला नहीं जब उमड़ती है तो रुकने का नाम नहीं लेती और जब नहीं उमड़ना चाहती तो मन और भावनाओं को बंजर बना देती है........सच ही कहा है-


लव्ज़ एहसास से छाने लगे ये तो हद है
लव्ज़ माने भी छुपाने लगे ये तो हद है।



इन दिनों देश में कुछ इस तरह की घटनाएं हुईं कि कभी ख़ुद पर तो कभी समाज पर और कभी इसके तह में छिपी राजनीति पर कोफ़्त होता है..............क्या हम इतने अपाहिज हो चुके हैं, कुछ भी होता रहे हमारी ऑखों के सामने और हम सहने को मजबूर हैं....कोई दूसरा रास्ता नहीं सिवाय सहने के........
पर ये देश ऐसा है जहॉ ऑसुओं के साथ भी खिलवाड़ होता है........संवेदनाओं से राजनीति की जाती है.........



इस देश पर फ़क्र है हमें............
फक्र है कि हम इस देश के नागरिक हैं..........
ये देश प्रतीक है गंगा-जमुनी तहज़ीब का ........
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई एकता का........
हिन्दी-मराठी,सभी भाषाओं और बोलियों का.........
पर क्या वाकेई ?
इस देश के टुकड़े-टुकड़े करने को तैयार हैं
यहॉ के रहनुमा।
बात सिर्फ हिन्दू और मुसलमा की नहीं है,
बात अब हिन्दी और मराठी की भी है....
बात मज़हब की ही नहीं,
बात अब भाषा की भी है
आखिर कब तक ये तांडव जारी रहेगा........
तांडव मौत का,
बेगुनाहों की मौत का ......
क्या? आप में से कोई है!
जो ज़िन्दा है...............





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2 comments:

Shambhu Choudhary said...

स्मृति जी, आपकी रचना से आपके व्यक्तित्व का परिचय मिलता है। शुभकामनएं। अपना पुरा परिचय एक चित्र आपके ब्लॉग का लिंक भी दें । -शम्भु चौधरी

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma said...

वर्त्तमान स्थिति पर आपने सही लिखा है।

धन्यवाद।


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महेश

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