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अंधेरों का सफर .....

अक्सर सफर में लंबे अंधेरे होते हैं और रौशनी दूर तक नहीं दिखती ......कई बार दर्द होता है और दवा भी ख़ुद ही को करनी होती है। कई बार अपने सवालों के लिए अपने आप से ही जवाब माँगना होता है......कई बार नाउम्मीद होने पर ख़ुद ही उम्मीद की सड़क खोजनी होती है। यह हम सबके साथ होता है और ऐसे में ही ऐसी कुछ नज्में और गज़लें निकलती हैं ....

अंधेरों का सफर .....

दीवारों से टकराता रस्ता ढूंढता हूँ
अक्सर अंधेरों में घूमता हूं

दीवारों पर लिखी इबारतों का मतलब
साथ खड़े अंधेरों से पूछता हूं

अक्सर अंधेरों में घूमता हूं

टटोलता खुद के वजूद को
अपने ही ज़ेहन में मुसल्सल गूंजता हूं

अक्सर अंधेरों में घूमता हूं

बार बार लड़ अंधेरे में दीवारों से
बिखरता हूं, कई बार टूटता हूं

अक्सर अंधेरों में घूमता हूं

अकड़ता हूं, लड़ता हूं, गरजता हूं
अंधेरे में, अंधेरे को घूरता हूं

अक्सर अंधेरों में घूमता हूं

अहसास है रोशनी की कीमत का
दियों की लौ चूमता हूं

अक्सर अंधेरों में घूमता हूं

हर तीन दीवारों के साथ
खड़ा है दरवाज़ा एक
बस इसी उम्मीद के सहारे
अक्सर अंधेरों में घूमता हूं

1 comment:

vikky said...

अक्सर अंधेरों में घूमता हूं !!

bhot khob lekh hai zindagi ke behid kareeb