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सर्दियों का ना होना

सुबह उठा तो देखा धूप निकल आई है,
घड़ी देखी तो आठ ही बजा था....रात ३ बजे
सोया था सो थोडी सी देर से उठा पर आठ बजे धूप ?
यकीं नहीं हुआ कि जनवरी अभी ख़त्म नहीं हुआ....
पर सर्दी ख़त्म होने चली है।
यकीं करने को जी नहीं चाहता कि इतनी जल्दी ये रूमानी मौसम जा रहा है
पर परेशान करता स्वेटर कह रहा है कि
यकीं कर लो क्यूंकि मैं पसीने से भीग रहा हूँ।
दरअसल शुरुआत तो हुई सर्दी के
जल्दी दिवंगत हो जाने के ख़याल से
पर याद आ गए वो दिन......


सर्दी की दोपहरों में

छतों पर धूप सेंकती रजाईयां

गुम हैं सर्दी की शाम बिना अलाव बिन चाय गुमसुम है
छतों पर, चौखटों
पर बिनती स्वेटर, उडाती अफवाहें
वो औरतें कहाँ गई
सांझ के धुंधल के में
पार्क में बच्चों की तसवीरें धुंधला गई
सुबह उठने के बाद सड़कों पर कोहरा नहीं
इंसानों का सैलाब हैमन नहीं लगता
इस शहर में
मौसम ख़राब है
स्कूल जाते बच्चे
स्कार्फ, लंबे मोजे और दस्ताने
गए हैं भूल
नए घरों के
आधुनिक लाडले
कैब से जाते हैं स्कूल
अंगीठी अब खो गई है
या बदल गई है
एयर कंडीशनर में
सर्दी का मौसम
रह गया है केवल टीवी की ख़बर में याद आती है
बहुत अपने शहर की उस मौसम सर्द की सजा है
हमारे लिए ये सब कुदरत बेदर्द की

मयंक सक्सेना द्वारा: जी न्यूज़, FC-19, फ़िल्म सिटी,
सेक्टर 16 A, नॉएडा, उत्तर प्रदेश - 201301

ई मेल : mailmayanksaxena@gmail.com


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