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पानी- जय कुमार रूसवा

मैं अपने दोस्त के साथ जा रहा था
उसकी सुन रहा था अपनी सुना रहा था
चलते - चलते मिठाई की दुकान आई
देखते ही दोस्त ने प्रेम की गंगा बहाई
और पूछा - रूसवाजी रसगुल्ले खाओगे?
मैंने कहा - तुम खिलाओगे?
वो बोला - खिलाऊंगा, मैने कहा - खाऊंगा
अच्छी-सी कुर्सी देख
हम दोनों ने आसन जमाए
पंद्रह - पंद्रह रसगुल्ले खाए
उसके बाद दोस्त बोला -
मैं जरा पानी पीकर आता हूँ
तुम्हारे लिए लाता हूँ
वह गया - लौटकर ही नहीं आया
120 रूपयों का बिल मैंने चुकाया
कुछ दिनों बाद -
हम दोनों फिर साथ-साथ जा रहे थे
सुन रहे थे, सुना रहे थे
चलते - चलते
मिठाई की दूसरी दुकान आई
देखते ही दोस्त नें
प्रेम की गंगा-यमुना दोनों बहाई
और पूछा - रूसवा जी पेड़े खाओगे?
मैंने कहा - खाऊंगा
लेकिन इस बार, पानी पीने मैं जाऊंगा
-जय कुमार रूसवा, कोलकता