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ब्याह को पंडाल - राधेश्याम पोद्दार

(मारवाड़ी भाषा में)


गरीबाँ की छोर्याँ सिसक रही, थे लाखाँ को पंडाल बणायो।
घड़ी दो घड़ी शोभा करली, पण कोई क काम न आयो।
घणी छोरियाँ क्वाँरी बैठी, वह नहीं अगणित पीसो पायो।
मात पिता गुजरान कर है, घुट-घुट करके जनम गँवायो।
थे समाज स पीसो पायो, पर समाज-हित में न लगायो।
पेट भर कुत्तो भी निजको, इसमं कौन बड़ाई पायो।
देख्या देखी क सौद मं, थे तो धन न व्यर्थ गमायो।
ऊंडी बात बिचारी कोनी, बणिया होकर घाटो खायो।
मन में थे लक्ष्मीपति विष्णु, रत्ती भर भी नहीं सहिष्णु।
दो पीसा भी दिया किसी न, तो उसन दस बार गिणायो।
चंचल लक्ष्मी सदा न रहणी, चोखा चोखा काल समायो।
धन धरती नहीं संग में चाली, क्यूं बडपन को ढ़ोंग रचायो।
बहती गंगा हाथ पखालो, बारम्बार न मौको पायो।
धन की तीजी गति निश्चित है, झूठो थे मन न भरमायो।
गरीबाँ की छोर्याँ सिसक रही, थे लाखाँ को पंडाल बणायो।


2. दहेज-उन्मूलन का उपाय


दहेज उन्मूलन के लिये, सभा हुई बहु बार।
नेताओं ने भी दिया, भाषण धुआँधार।
फोटो खिंचवाये बहुत, नाम छपा अखबार।
माला से ग्रीवा भर गई, तालियों का अम्बार।
किन्तु मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों किया उपचार।
दहेज बढ़ता ही गया, सुरसा मुख सा हर बार।
त्याग औषधि रोग की, जिसका न किया व्यवहार।
भाषण से नहीं उतरता, दहेज का प्रबल बुखार।
नेता भी है अनेकजन, उनके पुत्रों का अम्बार।
किसी पुत्र के ब्याह में, दहेज न त्यागा यार।
भीतर ही भीतर लिया, नहीं लोग दिखावन हार।
खातिर में लगवा लिया, दस बीस लाख का सार।
बाकी कन्या के नाम से, लिया दहेज भरमार।
इसी भाँति घर भर लिया, ले बहुमूल्य उपहार।
मुखौटा समाज सुधार का, समाज बिगाड़नहार।
सिर्फ भाषण में ही त्याग है, दहेज मिटावनहार।
धनपतियों के ही यहाँ, किया ब्याह-व्यापार।
अन्तर्मन में कामना, मिले दहेज-भंडार।
बहु कन्याएँ समाज में, बैठी ब्याहनहार।
पर पैसा नहीं पास में, सद्गुण का भंडार।
उनके यहाँ पर जो करें, नेता ब्याह-व्यवहार।
तो दहेज मिट जाएगा, यही सत्य का सार।


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