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हेल्यां शेखावाटी री -केसरीकान्त शर्मा ‘केसरी’

आज आ हेल्यां में
विखो पड़गो,
माइत मरगा,
सूनैं ढूंढां में
ढांढा रमै,
या अतिक्रमणियां भाईड़ा ।
चूनो चाटगी गायां
गुभारियां में गधा रमै
गरदै रा ढिगला
माटी रा अकूरड़ा
अठै-बठै अऊग्योड़ा
बड़-पीपळ रा गाछ
मकंड़्यां रा जाळा
कबूतरां री गुटरगूं
चमचेड़ां-भीभर्यां रो संगीत !
भूत-भूतण्यां रो बासो,
ओ कांई रासो ?
आंरा भाग कुंण खोलै ?
दिसावरां में रमियोड़ा नैं तो
फुरसत ई कोनी बिचापड़ा नै
बाप-दादा रा ठांव कठै-सी है,
या-ई कोनी जाणै ।
कांई आणी-जाणी है भाईजी
पांती में आज
अेक गुभारियो ही कोनी आवै
अर जिकां रै ज्यादा झमेलो नहीं है,
बै पुरखां रा हेली-नोरा-खेत-कुआ.....
बेचबां नै आवै.....
म्हांनै तो बोलतां-ई सरम आवै ।

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