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श्री जयप्रकाश सेठिया की ग्यारह कविता

1.
नहीं है कोई भी,
किसी के साथ
फिर भी करते हैं
साथ निभाने की बात
दिन-रात
अगर कभी हुए भी साथ
करते हैं
एक दूसरे पर आघात


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2.
जीवन की
पगडंडी पर
चलता है आदमी
कभी धीरे
कभी हँसते
कभी रोते
कभी सुख में
कभी दुःख में
कभी धैर्य से
कभी हांफते
कभी भागते
समझ नहीं आता
क्या हम सब करते हैं
यह मृत्यु के वास्ते।


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3.
जब तक था
कर्म करने में सझम
तब तक रहा
कर्म के मर्म को
समझने में अक्षम
जब हुआ
समझ से सक्षम
हो गया
कर्म करने में अक्षम।


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4.
असहज होकर
किये हुए
हर काम में
दुःख ही दुःख है
सहजता में
सुख ही सुख है।


5.
अकेला
हो गया हूँ
क्योंकि
भीड़ में
खो गया हूँ।


6.
मैं
का नाश
बनाता है
महान
'मैं'
के नाश से
होता है
ज्ञान
कर्ता से
जब बन जाता है
दृष्टा
तब
होता है ध्यान।


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7.
न था
पहले पता
और
न है अब पता
कि होगा क्या
यह जानते हुए भी
निरर्थक सोचता हूँ
लिप्त कर्म का
अनर्थ
और निर्लिप्त कर्म का
अर्थ
फिर भी कर रहा हूं
कर्ता बनने की
चेष्टा व्यर्थ
यही से है
अनर्थ।



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8.
जो रखते हैं
सब की खबर
वे होते हैं
स्वयं से बेखबर।



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9.
बनने के लिए ज्योति
जलना तो पड़ेगा ही
बुझोगे तब
बनोगे विभूति



10.
सबसे बड़ा
धन
सधा हुआ
मन।


11.

सबसे बड़ी
विडम्बना है
कि आदमी नहीं बनना चाहता है
आदमी।


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कवि परिचय:
'नमन' शीर्षक नामक श्री जयप्रकाश सेठिया का प्रथम काव्य संग्रह प्रकाशित । आप हिन्दी-राजस्थान साहित्य के माहन युग कवि श्रद्धेय श्री कन्हैयालाल सेठिया जी के ज्येष्ठ पुत्र हैं। आपको कवि हृदय विरासत में मिली है। आप पिचले 45 वर्षों से सतत लिखते रहें हैं।
अपरोक्त सभी कविताएँ इनकी प्रथम पुस्तक ' नमन ' से ली गई है। इस पुअस्तक की भूमिका डॉ.अरुण प्रकाश अवस्थी जी ने लिखी है। संपर्क: 6, आशुतोष रोड, एक तल्ला, कोलकाता - 700 020 मो. 09903086968
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5. नरेश अग्रवाल(झारखंड) की चार कविताएँ

1. यह लालटेन

सभी सोये हुए हैं
केवल जाग रही है
एक छोटी-सी लालटेन
रत्ती भर है प्रकाश जिसका
घर में पड़े अनाज जितना
बचाने के लिए जिसे
पहरा दे रही है यह
रातभर ।


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2. परीक्षाफल

वह बच्चा
पिछड़ा हुआ बच्चा
चील की तरह भागा
अपना परीक्षाफल लेकर
अपनी मॉं के पास
एक बार मॉं बहुत खुश हुई
उसके अच्छे अंक देखकर
फिर तुरंत उदास
किताबें खरीदकर देने के लिए
पैसे नहीं थे उसके पास।


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3. तुम्हारी थकान

इधर तुम काम बन्द करते हो
उधर सूरज अपनी रोशनी
चारों तरफ अंधेरा छा जाता है
और तुम्हारी थकान
जलने लगती है
एक मोमबत्ती की तरह ।


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4. फुटबॉल


अचानक गोल
कुछ दर्शक चिल्लाते हैं
बहुत अच्छा हुआ
कुछ चुपचाप हैं
अपने पक्ष को
हारते देख
गेंद को थोड़ा-सा भी
अवसर नहीं
सोचने का,
वह किसका साथ दे
किसका नहीं ।


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परिचय:
नाम: नरेश अग्रवाल,
1 दिसम्बर 1960 को जमशेदपुर में जन्मे श्री नरेश अग्रवाल मुख्यतः व्यवसाय में संलग्न रहते हुए 'कवि हृदय' को काफी सुन्दरता से उजागर किया है। आपकी कविता प्रायः देश की सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है। जिसमे मुख्यतः वागर्थ, सबरंग, आवर्त, दस्तावेज, माध्यम, आकंठ, वर्तमान साहित्य, वसुधा, प्रभात खबर, हिन्दुस्तान आदि में प्रकाशित। आप लेखन के साथ-साथ बोनसोई कला में पूर्ण रूप से दक्ष । आपकी पुस्तक "पगडंडी पर पाँव" से चार कविता यहाँ दे रहें हैं। संपर्क: रेखी मेन्शन, 8 डायगनल रोड, विष्टुपुर, जमशेदपुर- 831001 फोन. 09334825981




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4. जवाब नेता देंगें -गोविन्द गोयल

---- चुटकी ----
बम ब्लास्ट के बारे में
पुलिस से
मत मांगों कोई जवाब,
आतंकवादियों के
प्रवक्ता तो
हमारे नेता हैं जनाब।

पहाड़िया

सुशील कुमार



(पाकुड़-साहेबगंज इलाकों की पहाड़ी जिंदगी से रू-ब-रू होकर.....,)


दिन समेटकर उतरता है थका-माँदा बूढ़ा सूरज
पहाड़ के पीछे
अपने साथ वन-प्रांतरों की निःशेष होती गाथाएँ लिये
तमतमायी उसके आँखों की ललाई पसर जाती है
जंगलों से गुम हो रही हरियाली तक
मृतप्राय नदियों में फैल रहे रेतीले दयार तक
विलुप्त हो रहे पंछियों के उजड़ रहे अंतिम नीड़ तक।
ऊँची-नीची पगडंडियों पर कुलेलती
लौटती है घर पहाड़न
टोकरीभर महुआ
दिन की थकान
होठों पर वीरानियों से सनी कोई विदागीत लिये।
उबड़-खाबड़ जंगल-झाड़ के रस्ते लौट आते हैं
बैल-बकरी, सुअर, कुत्ते, गायें भी दालान में
साँझ की उबासी लिये।
साथ लौटता है पहाड़िया बगाल
निठल्ला अपने सिर पर ढेर सा आसमान
और झोलीभर सपने लिये

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(२)
घिर जाती है साँझ और गहरी
अंधरे के दस्तक के साथ ही
घर-ओसारे में उतर आते हैं महाजन
खटिया पर बैठ देर तक
गोल-गोल बतियाते हैं पहाड़ियों से
हँसी-ठिठोली करते घूरते हैं पहाड़नों को
फिर खोलते हैं भूतैल खाते-बहियाँ अपनी
और भुखमरी भरे जेठ में लिये गये उधार पर
बेतहाशा बढ़ रहे सूद का हिसाब पढ़ते हैं
दूध, महुआ, धान, बरबट्टी और बूटियों के दाम से
लेकर पिछली जंगल-कटनी तक की मजूरी घटाकर भी
कई माल-मवेशी बेच-बीकन कर भी
जब उरिन नहीं हो पाता पहाड़िया तो
गिरवी रख लते हैं महाजन
पहाड़न के चांदी के जेवर, हंसुली, कर्णफूल, बाले वगैरह....।
तेज उसाँसें भरता अपने कलेजे में पहाड़िया
टका देता है अपना माथा महाजन के पैर पर।
तब महाजन देते हैं भरोसा
कोसते हैं निर्मोही समय को
वनदेवता से करते हैं कोप बरजने की दिखावटी प्रार्थनाएँ
अपनेपन का कराते हैं बोध पहाड़िया को
गलबहियाँ डाले महाजन साथ मिलकर दुःख बांटने का
और संग-संग पीते हैं 'हंडिया-दारू' भी
भात के हंडियों में सीझने तक,
फिर देते हैं, एक जरूरी सुझाव जल्दी उरिन होने का,
जंगल कटाई का -
फफक-फफक असहमति में सिर हिलाता रो पड़ता है पहाड़िया
पहाड़न गुस्से से लाल हो बिफरती है
गरियाती है निगोड़े महाजन को
करमजले अपने मरद को भी
पर बेबस पहाड़िया
निकल पड़ता है माँझी-थान में खायी कसमें तोड़
हाथ में टांगी, आरा लिये निविड़ रात्रि में
भोजन-भात कर, गिदरा-गिदरी को सोता छोड़
पहाड़न से झगड़ कर
महाजन के साथ बीहड़ जंगल ।

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(३)
रातभर दुःख में कसमसाती
अपने भीतर सपने टूटते देखती है पहाड़न
रात गिनती
मन की परत-परत गांठें खोल पढ़ती है पहाड़न
नशे में धुत्त पहाड़िया रातभर
पेड़ों के सीने पर चलाता है आरा, टांगी
और काटता रहता है अपने दुःखों के जंगल।
बनमुरगे की कुट्टियाँ नोंचते
रहरह कर दारू, बीड़ी पीते
जगे रहते हैं संग-संग धींगड़े महाजन भी रातभर।

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(४)
शीशम, सागवान, साल की सिल्लियाँ लादे
जंगल से तराई की ओर बैलगाड़ियाँ पर कराते महाजन,
बिना दातुन-पानी किये, बासी भात और अपनी गिदरे
पीठ पर गठियाये महुआ बीनने पहाड़न,
मवेशियों को हाँक लगाता बगाल पहाड़िया
कब के उतर चुके होते हैं पहाड़ी ढलान !
बहुत सुबह, सूरज के उठान के काफी पेश्तर ही !!
खाली रहती है बहुधा पहाड़ी बस्तियाँ दिनभर
बचे रहते हैं पहाड़ पर सिर्फ़
सुनसान माँझी-थान में पहाड़ अगोरते वनदेवता
उधर पूरब में जलता-भुनता सूरज
और गेहों में लाचार कई वृद्ध-वृद्धाएँ ।


सुशील कुमार

जन्म : १३ सितम्बर, १९६४, पटना सिटी में, किंतु पिछले तेईस वर्षों से दुमका (झारखण्ड) में निवास। शिक्षा : बी०ए०, बी०एड० (पटना विश्वविद्यालय) सम्प्रति : घर के हालात ठीक नहीं होने के कारण पहले प्राइवेट ट्यूशन, फिर बैंक की नौकरी की - १९९६ में लोकसेवा आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण कर राज्य शिक्षा सेवा में संप्रति +२ जिला स्कूल चाईबासा में प्राचार्य के पद पर प्रकाशन : हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में लिखने-पढ़ने में गहरी रुचि. कविताएँ कई प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित
E-Mail:sk.dumka@gmail.com

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किस्मत की बलिहारी भइया

कुंवर प्रीतम


किस्मत की बलिहारी भइया, किस्मत की बलिहारी भइया
मेहनतकश को भूख नसीब पर, खाए जुआरी माल-मलइया
टाटा बिरला सेज बनावैं, हाथ बटावे कॉमरेड भइया
मार भगावें गरीब मजूर को, जमीन तुम्हारी काहे की भइया
भागो-भागो दूर गरीबो, देस तुम्हारा नहीं रहा अब
इंडिया शाइनिंग, इंडिया शाइनिंग, देत सुनात दिन-रात है भइया


गान्हीजी के देस में हमरी, हुई हाल ई काहे भइया
पूछा इकदिन माट साब से, बोले उड़ गई तोरी चिरइया
अब जे इस देस में रहबै, जै हिन्द बोली बन्द करौ
भारतवर्ष का वासी हौ तो, अंखियां अपनी बन्द करौ
नाम रटो इटली मइया के, सोनिया देवी कहात हैं भइया
काका कहिन हार के हमसै, ले चल जीवत मशान रे भइया
हम न जीइब अब ई कलियुग में, देस हमार ना रहा ई भइया

किस्मत की बलिहारी भइया, किस्मत की बलिहारी भइया
मेहनतकश को भूख नसीब पर, खाए जुआरी माल-मलइया
टाटा बिरला सेज बनावैं, हाथ बटावे कॉमरेड भइया
मार भगावें गरीब मजूर को, जमीन तुम्हारी काहे की भइया
भागो-भागो दूर गरीबो, देस तुम्हारा नहीं रहा अब
इंडिया शाइनिंग, इंडिया शाइनिंग, देत सुनात दिन-रात है भइया

गान्हीजी के देस में हमरी, हुई हाल ई काहे भइया
पूछा इकदिन माट साब से, बोले उड़ गई तोरी चिरइया
अब जे इस देस में रहबै, जै हिन्द बोली बन्द करौ
भारतवर्ष का वासी हौ तो, अंखियां अपनी बन्द करौ
नाम रटो इटली मइया के, सोनिया देवी कहात हैं भइया
काका कहिन हार के हमसै, ले चल जीवत मशान रे भइया
हम न जीइब अब ई कलियुग में, देस हमार ना रहा ई भइया



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मंजिल - महेश कुमार वर्मा


1. हमें अपनी मंजिल को पाना है


हमें अपनी मंजिल को पाना है
हर चुनौती को स्वीकारना है
राह में चाहे जो भी बाधा आए
दुश्मन चाहे लाखों कांटा बिछाए
हरेक बाधा को तोड़ना है
हमें अपनी मंजिल को पाना है
जीवन में आगे बढ़ना है
जीवन में आगे बढ़ना है
हमें अपनी मंजिल को पाना है


2. अपना कर्म करते जा

अपना कर्म करते जा
जीवन में आगे बढ़ते जा
देखो कभी न तुम मुड़कर
सोचो कभी न तुम रूककर
हर परिस्थिति में बढ़ते जा
हर बाधा को तोड़ते जा
अपना कर्म करते जा
जीवन में आगे बढ़ते जा



परिचय:
नाम: महेश कुमार वर्मा,
शिक्षा : प्राथमिक / मध्य विद्यालय : राजकीय कन्या मध्य विद्यालय, छत्तरपुर, पलामू (झारखण्ड); उच्च विद्यालय : राजकीय संपोषित उच्च विद्यालय, छत्तरपुर, पलामू (झारखण्ड); मैट्रिक : राजकीय संपोषित उच्च विद्यालय, छत्तरपुर, पलामू (झारखण्ड); बोर्ड : बिहार विद्यालय परीक्षा समिति, पटना; वर्ष : 1993; इंटर --I.Sc. (Math) : B. D. Evening College, Patna; बोर्ड : Bihar Intermediate Education Council, Patna; वर्ष : 1995
वर्तमान पता: DTDC कुरियर ऑफिस, सत्यनारायण मार्केट, मारुती (कारलो) शो रूम के सामने, बोरिंग रोड, पटना (बिहार), पिन : 800001 (भारत);
Contact No. : +919955239846



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September-08क्रमांक सूची

महेश कुमार वर्मा की दो कविताएँ
इंसान - स्मृति दुबे
श्री अखिलेश सोनी की दो क्षणिकाएँ
हालत आज क्या हो गई इंसान की
आज फ़िर चला पटाका - Dr.SK Mittal
हिन्दी दिवस समाचार - इन्दिरा चौधरी
आवाज .... - मयंक सक्सेना
श्री अशोक शर्मा की चार हास्य कविता

शम्भु चौधरी नई कविता 'शांति' विश्व की छः भाषाओं में
देवी नागरानी की दो कविता
डॉo सुरेश अवस्थी की दो कविता
जड़ें: -सुशील कुमार
श्री रंग की दो कविताऎं
आत्म-विश्लेषण - डॉ० श्यामसखा 'श्याम' मौदगल्य
सुरेन्द्र कुमार 'अभिन्न' की दो कविता
मकडियां ....- मयंक सक्सेना
कान्हा खेलत ब्रिज में - Dr.SK Mittal
कट्टरवाद - शम्भु चौधरी
ई-हिन्दी साहित्य सभा द्वारा प्रस्तुत ।। ঈ-হিন্দী সাহিত্য সভা ।। ई-हिन्दी साहित्य सभा द्वारा प्रस्तुत ।। ଈ-ହିନ୍ଦ ସାହିତ୍ଯ ସଭା ।। ई-हिन्दी साहित्य सभा द्वारा प्रस्तुत ।। ઈ-હિન્દી સાહિત્ય સભા ।। ई-हिन्दी साहित्य सभा द्वारा प्रस्तुत

महेश कुमार वर्मा के दो कविताएँ :


1. मेरे देश की कहानी


सुनो! सुनो! ऐ दुनिया वालों, सुनो! देश की नई कहानी
जहाँ रोज घटता~ ~ घोटाला! और होती बेईमानी!
भ्रष्ट्राचार संसद में नाचा, देश की हुई यही निशानी।
सुनो! सुनो! ऐ दुनिया वालों, सुनो! देश की नई कहानी
बेईमानी, घुसखोरी रग-रग में फैली
इसी पर टिकी सरकार की गाड़ी।
बढ़ रहे हैं बढ़ रहे हैं बढ़ते ही रहेंगे
भ्रष्ट्राचार को ये खिलाड़ी।
तड़पते और मरते ही रहेगें
किसान बने देश के भीखारी।
कुछ नहीं है इनका विचार
जो देश को करता हो महान।
सुनो! सुनो! ऐ दुनिया वालों, सुनो! देश की नई कहानी
जहाँ रोज घटता~ ~ घोटाला! और होती बेईमानी!
पुरुष हो या महिला, गरीब हो या लाचार
सबों के साथ हो रहा अत्याचार
यही है इनकी शक्ति का आधार
अरे! ये नई नहीं, यह बात तो है वर्षों पुरानी
यहाँ हमेशा होती रही, बेईमानी ही बेईमानी।
यही है इस देश की कहानी,
नई नहीं बस वही है कहानी
यही है मेरे देश की कहानी
यही है मेरे देश की कहानी।


2. इंसान नहीं हैवान हैं हम


इंसान नहीं हैवान हैं हम
मारते बेकसूर जीव को और
भरते अपना पेट हैं हम
इंसान नहीं हैवान हैं हम
इंसान नहीं हैवान हैं हम
मत कहो हमें सर्वाधिक बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी
हम रोज करते हैं बेईमानी ही बेईमानी
करते हैं अत्याचार
होती है बलात्कार
देते हैं रिश्वत
कोई नहीं करता है बहिष्कार
एक दिन नहीं रोज का है धंधा
पहुंचाते हैं पैसा
डालते हैं डाका
देते हैं उसे भी आधा
पैसे दो मौज मनाओ
कुछ न कहेंगे कुछ न करेंगे
अपना काम करते रहो
वे यों ही सोते रहेंगे
पीड़ित के आने पर हंटर ही लगाएंगे
वे पुलिस हैं पुलिस ही कहलाएंगे
यह थी हमारी एक झलक
होती है यहाँ अत्याचार झपकते ही पलक
अन्याय करने में सब है मतवाला
जो जितना बड़ा उसका मुँह उतना ही काला
मत कहो हमें सर्वाधिक बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी
हम तो हैं दुनियाँ के सर्वाधिक खतरनाक प्राणी
इंसान नहीं हैवान हैं हम
कलियुग के शैतान हैं हम
कलियुग के शैतान हैं हम
इंसान नहीं हैवान हैं हम
इंसान नहीं हैवान हैं हम



परिचय:
नाम: महेश कुमार वर्मा,
शिक्षा : प्राथमिक / मध्य विद्यालय : राजकीय कन्या मध्य विद्यालय, छत्तरपुर, पलामू (झारखण्ड); उच्च विद्यालय : राजकीय संपोषित उच्च विद्यालय, छत्तरपुर, पलामू (झारखण्ड); मैट्रिक : राजकीय संपोषित उच्च विद्यालय, छत्तरपुर, पलामू (झारखण्ड); बोर्ड : बिहार विद्यालय परीक्षा समिति, पटना; वर्ष : 1993; इंटर --I.Sc. (Math) : B. D. Evening College, Patna; बोर्ड : Bihar Intermediate Education Council, Patna; वर्ष : 1995
वर्तमान पता: DTDC कुरियर ऑफिस, सत्यनारायण मार्केट, मारुती (कारलो) शो रूम के सामने, बोरिंग रोड, पटना (बिहार), पिन : 800001 (भारत);
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इंसान - स्मृति दुबे



मुआफी चाहती हूँ काफी समय हुए कुछ लिख नहीं पायी.......लेखन वाकेई आसान कला नहीं जब उमड़ती है तो रुकने का नाम नहीं लेती और जब नहीं उमड़ना चाहती तो मन और भावनाओं को बंजर बना देती है........सच ही कहा है-


लव्ज़ एहसास से छाने लगे ये तो हद है
लव्ज़ माने भी छुपाने लगे ये तो हद है।



इन दिनों देश में कुछ इस तरह की घटनाएं हुईं कि कभी ख़ुद पर तो कभी समाज पर और कभी इसके तह में छिपी राजनीति पर कोफ़्त होता है..............क्या हम इतने अपाहिज हो चुके हैं, कुछ भी होता रहे हमारी ऑखों के सामने और हम सहने को मजबूर हैं....कोई दूसरा रास्ता नहीं सिवाय सहने के........
पर ये देश ऐसा है जहॉ ऑसुओं के साथ भी खिलवाड़ होता है........संवेदनाओं से राजनीति की जाती है.........



इस देश पर फ़क्र है हमें............
फक्र है कि हम इस देश के नागरिक हैं..........
ये देश प्रतीक है गंगा-जमुनी तहज़ीब का ........
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई एकता का........
हिन्दी-मराठी,सभी भाषाओं और बोलियों का.........
पर क्या वाकेई ?
इस देश के टुकड़े-टुकड़े करने को तैयार हैं
यहॉ के रहनुमा।
बात सिर्फ हिन्दू और मुसलमा की नहीं है,
बात अब हिन्दी और मराठी की भी है....
बात मज़हब की ही नहीं,
बात अब भाषा की भी है
आखिर कब तक ये तांडव जारी रहेगा........
तांडव मौत का,
बेगुनाहों की मौत का ......
क्या? आप में से कोई है!
जो ज़िन्दा है...............





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श्री अखिलेश सोनी की दो क्षणिकाएँ

गुण
नेताजी का कुत्ता
नेतागिरी के गुण
लेने लगा है,
अब भौंकने के बजाय
"स्माइल"
देने लगा है.

चुनाव
नेताजी आजकल
नींद में
बडबडाने लगे हैं,
चुनाव
नज़दीक आने लगे हैं.




अखिलेश सोनी, भोपाल
Mobile : 9993759314



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हालत आज क्या हो गई इंसान की


ग़ज़ल

हालत आज क्या हो गई इंसान की
पैसे को दे दी जगह भगवान की

चैन से बैठा नहीं जाता है मुझसे
बात जब होती हैं हिन्दोस्तान की

अपनी जेबें भरने से फुर्सत नहीं
बात करते हैं यहाँ कल्याण की

किस कदर माहौल बदला है यहाँ
हो रही जयकार बेईमान की

आपने सब-कुछ ख़रीदा हो मगर
है नहीं कीमत कोई मुस्कान की

मत गिरो इतना भी नीचे दोस्तों
मर ना जाए रूह स्वाभिमान की




अखिलेश सोनी, भोपाल
Mobile : 9993759314



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आज फ़िर चला पटाका



आज हिमालय की चोटी से फिर किसी ने पुकारा है
आतंकवाद के साये में जलते पड़ोसी ने ललकारा है
पूरा भारत घूम, इंडियन मुजाहिद्दीन, दिल्ली में फिर धमक गया
भारत के सपूतों ने आईएसआई की इस चुनौती को स्वीकारा किया
आतंक के सौदागरों को चेतावनी का संदेश भिजवाया है
बम फोड ले सडक खोल ले - कश्मीर हमारा है
६० साल से जालिम तुने, मासूमों पर कहर बरपाया है
हम ने, मुहतोड़ जवाब दिया और हर जगह, तुझे हराया है
खेमकरण और कारगिल के संग्राम की पिटाई तू क्या भूल गया
जम्मू सूरत, हैदराबाद या बनारस चाहे संसद तेरी मौत भूल गया
शायद खावायिश लालकिले पे चाय पीने की अभी भुला नहीं तू
शास्त्री के जय जवान की मार को आज भी याद कर तू
राम, कृष्ण, गौतम, गाँधी, तिलक, जवाहर के हम वंशज हैं जानले
सर पे कफ़न माथे पे तिलक, कमर कसे है हिंदकी सेना मानले
हमने विश्व को मानवता का सन्देश दिया
पंचशील और सद्भावना को माना और जिया
मुल्क में तेरे जमुरियत फिर से दस्तक दे रही है
बेनजीर को लुटा के इंसानियत भी रो रही है
सात समुन्द्र दूर बैठा तेरा आका आज तुझे जान गया
हम कुछ भी ना करें दुनिया का थानेदार तो डंडा तान चुका
कुरान-हदीस के पाक फतवों को भुला तू कुफ्र की वकालत कर रहा है
अपनों को भड़का के तू उन्हें क्यों नापाक नाकाम बदनाम कर रहा है
दुनिया कहाँ से कहाँ तरक्की कर गयी तू भी इसे जान ले
झूट बोलना आतंक बोना- लाशे काटना गलत है मान ले
रमजान के पाक महिने में सिजदा कर कुफ्र से तौबा मांग ले
छोड़ दे यह ओछी हरकते विनाश की,तरक्की की डगर थाम ले
मत ले इम्तहान नहीं तो तू पछतायेगा
कसम से हम उठ गए तो कौन बचायेगा
भारत वासियों मत घबड़ाना सब तुम्हारे साथ है
हम एकता, सावधानी, कठोरता, निरभ्यता, सद्भाव है
हिम्मत रखना मत घबड़ाना आतंकियों को सबक सिखाना है
जनगनमन, सत्यमेवजयते और वन्देमातरम गाना है



आज फ़िर चला पटाका

Dr. S.K. MITTAL Sri Raghvendra complex, 222/3A, Vijayanagar, 2nd Stage,
Mysore 570017 Tele: 0821-4282005-4264005-4250205 Fax 4264005
Mobile:09980246400 Res:08214246400



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हिन्दी दिवस समाचार - इन्दिरा चौधरी

चेतना नवजागरण का
विगुल बजाने के नाम पर,
फैलाते हैं -
बलात्कार !!! , हत्या !!!
हिंसक सनसनी समाचार।
जादू टोना, अश्लीलता,
बस ये ही बच गया है
हिन्दी में समाचार।
हिन्दी को तन, मन , धन से
लगे हैं बेचने को
मकसद इनका सिर्फ
T.R.P.
सिर्फ टी.आर.पी.
मानसिक रूप से खुद
अस्वस्थ्य समाचार समूह
परोसता रहता है दिन भर
अस्वस्थ समाचार
करता रहता है मासूमों की हत्या।
फिर एक नया समाचार?
क्या यही है हिन्दी पत्रकारिता?


श्रीमती इन्दिरा चौधरी, एफ.डी. 453, साल्ट लेक सिटी, कोलकाता - 700106


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आवाज... मयंक सक्सेना

काफ़ी दिनों से इस कविता को पूरा करने के लिए परेशान था सो आज हो ही गई ...... ये हम सबकी हकीक़त है ..... सब जो सोचा करते हैं, तो पढ़ें ....

चुप रहो
तुम्हारी आवाज़
दूसरों के कानों तक न जाए
यही बेहतर है

तुम्हारी आवाज़
हो सकता है
सच बोले
जो दूसरों को हो नापसंद
तो कर लो इसे बंद

तुम्हारी आवाज़
हो सकता है तुम्हारे पक्ष में हो
और उनको लगे
अपने ख़िलाफ़
वो करेंगे नहीं माफ़

तुम्हारी आवाज़
हो सकता है इतनी बुलंद हो
की उनके कानों के परदे फट जायें
फिर तुम्हारे साथी भी
तुमसे कट जाएँ

तुम्हारी आवाज़
दूसरी आवाजों से अलग हुई
तो
उन आवाजों को अच्छा नहीं लगेगा
वो
तब ?

तुम्हारी आवाज़ में
सवाल हो सकते हैं
सवालों से बडों का अपमान होता है
तुम्हारी आवाज़ में
अगर जवाब हुए तो
उनका हत मान होता है

तुम्हारी आवाज़
भले तुमको मधुर लगे
पर उनको ये पसंद नहीं
इसलिए
या तो चुप रहो
या फिर ज़ोर से चिल्लाओ
दुनिया को भूल जाओ
बंधन क्यूंकि
टूटने को उत्सुक है

मयंक सक्सेना द्वारा: जी न्यूज़, FC-19, फ़िल्म सिटी,
सेक्टर 16 A, नॉएडा, उत्तर प्रदेश - 201301

ई मेल : mailmayanksaxena@gmail.com


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